Uddhav Thackeray

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महाराष्ट्र: बीते कई दिनों से उद्धव ठाकरे की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में और एक बड़ी खबर सामने आई है। 500 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार मामले में ठाकरे गुट के विधायक रवींद्र वायकर का नाम सामने आया है। बता दें कि मुंबई पुलिस की ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध शाखा) के पास बीजेपी के किरीट सोमैया (Kirit Somaiya) ने शिकायत की थी। अब इसके बाद उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के विधायक रवींद्र वायकर (Ravindra Waikar) के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। जी हां  मिली जानकारी के मुताबिक, 500 करोड़ के भ्रष्टाचार मामले में शिवसेना के उद्धव ठाकरे विधायक रवींद्र वायकर को EOW ने नोटिस भेजा है। आइए जानते है पूरा मामला क्या है… 

क्या है BJP का आरोप 

जैसा कि हमने आपको बताया मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने बीजेपी के किरीट सोमैया की शिकायत के बाद शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के विधायक रवींद्र वायकर के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। दर्ज कराई गई शिकायत के अनुसार वायकर 500 करोड़ रुपये के घोटाले में वायकर शामिल है। ईओडब्ल्यू ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के उद्यान और भवन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को जांच में शामिल होने के लिए नोटिस भेजा है। अब देखना यह होगा कि  इस मामले में और कितने राजनेताओं के काले सच बाहर आएंगे। 

ये है पूरा मामला… 

बीजेपी के आरोप के अनुसार, वायकर ने अवैध रूप से एक बगीचे के लिए आरक्षित भूखंड पर 5 सितारा होटल के निर्माण की स्वीकृति प्राप्त की। इस मंजूरी को हासिल करने के लिए उन्होंने अपने राजनीतिक संबंधों का इस्तेमाल किया, जिससे बीएमसी को भारी नुकसान हुआ। ऐसे में अब जानकारी सामने आई है कि वायकर ने सोमैया के दावे को निराधार बताया और दावा किया कि उनके पास उक्त भूखंड के सभी दस्तावेज हैं और किसी भी नियम या कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। 

Ravindra Waikar

ऐसे होगी आगे की जांच

ET में छपी एक खबर के अनुसार, ईओडब्ल्यू के सूत्रों ने कहा कि बीएमसी के उद्यान और भवन विभाग के शीर्ष अधिकारियों से जल्द ही पूछताछ की जाएगी। उन्हें दस्तावेज के साथ आने को भी कहा गया है। ईओडब्ल्यू में मिलने वाली हर शिकायत की प्रारंभिक जांच की जाती है। यदि पर्याप्त तथ्य सामने आते हैं जो सुझाव देते हैं कि अपराध किया गया है, तो आगे की जांच और अभियोजन के लिए प्राथमिकी दर्ज की जाती है। यदि पूछताछ में पर्याप्त सामग्री नहीं मिलती है, तो मामला वहीं बंद कर दिया जाता है।