नागपुर: आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी करने में बीजेपी (BJP) अव्वल रही है। दूसरी सूची में देश के वजनदार नेता नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) को तीसरी बार नागपुर लोकसभा सीट (Nagpur Lok Sabha seat) से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा गया है। चंद्रपुर से वर्ष 2019 में हारे पूर्व सांसद हंसराज अहीर को इस बार मौका नहीं दिया गया। उनकी जगह राज्य में वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को उम्मीदवार बनाया गया है। अकोला में पूर्व सांसद संजय धोत्रे के बेटे अनूप व वर्धा से रामदास तड़स को टिकट दी गई है।
नागपुर सीट की उम्मीदवारी पहली सूची में घोषित नहीं किये जाने के चलते गडकरी के संदर्भ में तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए थे लेकिन उनके नाम की घोषणा के बाद अब कांग्रेस नेतृत्व पशोपेश में पड़ गया है कि किसे मैदान में उतारा जाए। 2019 लोस चुनाव में गडकरी के खिलाफ नाना पटोले को कांग्रेस ने उतारा था जिन्हें 4,44,212 वोट हासिल हुए थे जबकि गडकरी को 6,60,221 मत हासिल हुए थे। 2014 लोस चुनाव में कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार को गडकरी ने काफी बड़े अंतर से पराजित किया था। मुत्तेमवार को 3,02,919 वोट और गडकरी को 5,87,767 वोट हासिल हुए थे। इस बार तो दावा किया जा रहा है कि अपने विकास कार्यों के चलते गडकरी की लोकप्रियता और बढ़ी है।
वोटों के विभाजन का प्रयोग
कांग्रेस गडकरी को टक्कर देने के लिए वोटों के विभाजन का गणित लगा सकती है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा छोड़कर वापस कांग्रेस में आए वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले को मैदान में उतारा था। उन्होंने कड़ी टक्कर भी दी थी। इस बार दमदार ओबीसी चेहरा उतारा जा सकता है। चर्चा है कि विकास ठाकरे वह चेहरा हो सकते हैं। दूसरे ऑप्शन में मुत्तेमवार परिवार हो सकता है। विलासराव मुत्तेमवार 7 बार सांसद रह चुके हैं। युवा चेहरे के रूप में उनके बेटे विशाल मुत्तेमवार को टिकट दी जा सकती है। प्रफुल गुड़धे पाटिल, अभिजीत वंजारी के नाम भी चल रहे हैं लेकिन कांग्रेस में ही कुछ पदाधिकारियों की मानें तो गडकरी के खिलाफ लड़ने के लिए कोई सीनियर लीडर तैयार नहीं दिखा रहा है। कुछ ने तो हाथ खड़े कर दिये हैं।
वडेट्टीवार का बढ़ा टेंशन
2019 लोस चुनाव में कांग्रेस को राज्य में केवल एक चंद्रपुर सीट पर ही जीत मिली थी। भाजपा सांसद हंसराज अहीर से कांग्रेस के बालू धानोरकर ने यह सीट छीन ली थी। उनके कुछ महीनों पूर्व निधन के बाद से यह सीट रिक्त थी। बीजेपी ने यहां से राज्य में कैबिनेट मंत्री सुधीर मुनगंटीवार को उम्मीदवार बनाया है। उनके नाम की घोषणा के बाद से ही विधानसभा में नेता विपक्ष विजय वडेट्टीवार का टेंशन बढ़ गया है। धानोरकर के निधन के बाद वडेट्टीवार की बेटी शिवानी वडेट्टीवार को लोस चुनाव के लिए आगे किया जा रहा था। अगर पार्टी शिवानी को उम्मीदवारी देती है तो वडेट्टीवार के सामने डबल चुनौती होगी।
पहली कांग्रेस की इस सीट को अपने कब्जे में बरकरार रखने की और दूसरी अपनी बेटी को किसी भी हाल में जीत दिलाने की। मुनगंटीवार पहले से ही आर्गनाइज्ड हैं। पालक मंत्री रहते हुए उन्होंने बीते डेढ़ वर्ष में काफी कार्य किया है। कांग्रेस में धानोरकर के समर्थक उनकी पत्नी प्रतिभा को टिकट देने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि मुनगंटीवार के सामने चुनौती पेश करनी है तो धारोरकर परिवार को ही टिकट मिलनी चाहिए। कांग्रेस सिम्पैथी कार्ड भी यहां से खेल सकती है। धानोरकर ने अहीर को कड़ी टक्कर देते हुए पराजित किया था। उन्हें 5,59,507 वोट मिले थे और अहीर को 5,14,744 वोट हासिल हुए थे।
वर्धा में फिर तड़स पहलवान
बीजेपी ने 2 बार सांसद रहे रामदास तड़स पर फिर भरोसा जताया है। कुछ दिनों से वर्धा सीट से प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले सहित कुछ अन्य चेहरों के नाम चल रहे थे। तेली व कुणबी का संतुलन साधने के लिए तड़स को फिर मैदान में उतारा गया है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभा राव की पुत्री चारूलता टोकस को उम्मीदवारी दी थी। तड़स को 5,78,364 वोट हासिल हुए थे जबकि टोकस को 3,91,173 से संतोष करना पड़ा था।
वर्ष 2014 के चुनाव में इसी सीट से कांग्रेस ने तड़स के खिलाफ सागर मेघे को लड़ाया था लेकिन वे भी हार गये थे। वर्ष 2009 की बात करें तो कांग्रेस ने दत्ता मेघे को मैदान में उतारा था जिन्होंने भाजपा के सुरेश वाघमारे को पराजित किया था। इस बार कांग्रेस क्या चारूलता को रिपीट करती है या फिर कौन सा नया चेहरा सामने लाती है, यह देखने वाली बात होगी। चर्चा तो यह है कि एक ऐसा राजनीतिक परिवार जो कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस व भाजपा से जुड़ा हुआ है, उसके एक सदस्य को कांग्रेस उतार सकती है। इस परिवार का वर्धा से गहरा नाता रहा है।
अकोला में कोई रिस्क नहीं
वंशवाद व परिवारवाद का विरोध करने वाली भाजपा ने अकोला में किसी तरह का रिस्क लेने की हिम्मत नहीं दिखाई। सांसद संजय धोत्रे के पुत्र अनूप धोत्रे को उसने उम्मीदवारी दी है। संजय धोत्रे काफी दिनों से बीमार चल रहे हैं। बेटे को टिकट दिये जाने से बीजेपी के कई कार्यकर्ताओं में नाराजगी दिख रही है। उनका कहना है कि क्या नेताओं के रिश्तेदारों को ही मौका दिया जाता रहेगा। इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणी होता रहा है। कांग्रेस के साथ ही वंचित बहुजन आघाड़ी के प्रकाश आंबेडकर इस सीट से चुनाव लड़ते आए हैं। बीते चुनाव में उन्हें 2,78,848 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के हिदायतुल्लाह पटेल ने 2,54,370 वोट हासिल किये थे।
धोत्रे 5,54,444 वोट लेकर विजय हुए थे। वर्ष 2014 के चुनाव में भी भाजपा, कांग्रेस व वंचित पहले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रहे थे। आंबेडकर कई दिनों से मविआ में शामिल होने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन अब तक उन्हें भाव नहीं दिया गया है। अगर वंचित मविआ में शामिल हो गया और संयुक्त उम्मीदवार उतारा गया तो बीजेपी को चुनौती दी जा सकती है लेकिन वंचित व कांग्रेस दोनों के स्वतंत्र उम्मीदवार मैदान में होने से वोटों का विभाजन हो जाता है और भाजपा के लिए आसानी हो जाती है।