Nagpur High Court
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  • पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर होई कोर्ट की अंतरिम रोक

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नागपुर. ग्रीष्म अवकाश के समय 9 वर्षीय बेटे को रातभर के लिए ले जाने की स्वतंत्रता भले ही पारिवारिक न्यायालय ने दी हो लेकिन इस आदेश को चुनौती देते हुए मां की ओर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया. जिस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश रोहित देव ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. पारिवारिक न्यायालय ने हर माह के तीसरे शनिवार को बेटे को साथ में ले जाने की राहत पिता रजनीश को दी थी. याचिकाकर्ता नेहा की ओर से पैरवी कर रहे अधि. प्रकाश नायडू ने कहा कि गलत आधार और परिवेश में पारिवारिक न्यायालय की ओर से आदेश जारी किया गया. वास्तविक मुद्दों को उजागर करते हुए कहा कि जन्म से ही पिता ने बेटे और पत्नी को अकेले छोड़ दिया है.

सुको के आदेश का पालन नहीं

सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि न्यायालय ने पत्नी और बेटे के पालन पोषण के लिए खर्च देने के आदेश दिए थे. इसके खिलाफ रजनीश ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. जिसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की. जहां सर्वोच्च न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया. इस मामले का फैसला सुनाते हुए अदालत ने पालन-पोषण संबंधित मामलों के लिए कुछ अनिवार्यता ही लागू कर दी. जिसमें अब संबंधितों को सम्पत्तियों का खुलासा करते हुए अदालत के समक्ष शपथपत्र देना होगा. साथ ही उन्हें आय को लेकर भी खुलासा करना होगा. यह फैसला वर्ष 2020 में दिया गया. फैसले में अदालत ने रजनीश को 12 सप्ताह के भीतर 13 लाख रु. का भुगतान करने के आदेश दिए थे लेकिन अब तक इसका पालन नहीं किया गया है.

बेटे की पढ़ाई का खर्च भी नहीं

अधि. नायडू ने कहा कि बेटे की पढ़ाई का खर्च भी नहीं दिया जाता है. रामदास पेठ जैसे इलाके में स्थित मकान बिल्डर को बेच दिया है. वाइल्ड लाइफ टूरिजम के नाम पर देश-विदेश की सैर कर रहे हैं. आर्थिक रूप से सक्षम होने के बाद भी न केवल पत्नी बल्कि बेटे की जिम्मेदारी भी नहीं उठाई जा रही है. अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया जा रहा है. 13 लाख रु. पति पर बकाया है लेकिन इसका भुगतान नहीं किया गया. पारिवारिक न्यायालय ने आदेश जारी करने से पहले बच्चे से वार्तालाप करना चाहिए था लेकिन वार्तालाप नहीं किया गया. जिससे कानून की नजर में यह आदेश गलत है. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किया.