Nagpur News: स्टाफ की कमी से जूझ रहा मेडिकल कॉलेज, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने आ रहीं दिक्कतें

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  • 6  कॉलेज विदर्भ में 
  • 40 फीसदी पद खाली 
  • 05 वर्षों से बजट में बढ़ोतरी नहीं

नागपुर. एक ओर सरकार द्वारा शासकीय मेडिकल कॉलेजों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, वहीं दूसरी ओर स्टाफ की कमी व्यवधान उत्पन्न कर रही है. विदर्भ के सभी मेडिकल कॉलेजों में नर्सों से लेकर वर्ग-4 और वर्ग-3 के अनेक पद खाली है. कुछ जगह इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी भी गंभीर समस्या बनी हुई है. सरकार द्वारा दवाई सहित उपचार सामग्री के लिए दी जाने वाली निधि भी कम पड़ने लगी है. मेडिकल कॉलेजों को मजबूत बनाने के लिए सरकार को गंभीरता दिखाना होगा. सरकार ने पिछले बजट में नये मेडिकल कॉलेज खोलने का निर्णय लिया. इस निर्णय से स्नातक की सीटें तो बढ़ी, साथ ही निर्धन व जरूरतमंद मरीजों की प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भरता भी कम हुई है. आबादी बढ़ने के साथ ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भीड़ भी बढ़ी है. इस तुलना में मैन पॉवर उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है. विदर्भ में गोंदिया, चंद्रपुर, अकोला, यवतमाल 1-1 और नागपुर में दो मेडिकल कॉलेज सहित कुल 6 मेडिकल कॉलेज है. लेकिन सभी जगह एक जैसी स्थिति बनी हुई है.

पद भर्ती पर ‘अघोषित’ रोक 

नागपुर छोड़कर  विदर्भ के अन्य मेडिकल कॉलेजों में अब भी आधुनिक सुविधाओं की कमी बनी हुई है. यही वजह है कि जब भी कोई मरीज गंभीर अवस्था में होता है तो उसे नागपुर के लिए रेफर किया जाता है. गोंदिया, चंद्रपुर में अब भी पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं हुआ है. यवतमाल मेडिकल कॉलेज में वर्ग-3 और वर्ग 4 की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है. मेडिकल में नर्सों के कुल मंजूर पदों में से करीब 300 पद खाली है. वहीं मेयो में तो स्थिति और भी भयंकर है. यहां पुराने बेड यानी करीब 550 के अनुसार नर्सों की मंजूरी है. जबकि वर्तमान में बेड संख्या 850 तक पहुंच गई है. मेडिसिन विंग बनने के बाद यह संख्या 1,300 के पार हो जाएगी. कर्मचारियों के निवृत होने के बाद नई भर्ती पर अघोषित रोक लगी हुई है. अटेंडेंट के पद आऊट सोर्सिंग से भरे जा रहे हैं, लेकिन इस कर्मचारियों को भी वेतन बेहद कम मिलता है. नर्सों की भर्ती को लेकर इससे पहले भी आंदोलन किये गये लेकिन सरकार ने आश्वासन देकर मामला को रफा-दफा कर दिया. अकेले मेडिकल कॉलेज नागपुर में वर्ग-3 और वर्ग 4 के करीब 450 पद खाली है.

दवाइयां, उपकरणों की किल्लत

नये मेडिकल कॉलेजों में प्राध्यापकों की कमी बनी हुई है. इस वजह से छात्रों के अध्ययन पर भी असर पड़ रहा है. कुछ विभागों में तो गिनती के प्राध्यापक है जब भी मेडिकल कमीशन का निरीक्षण दौरा होता है तब अन्य कॉलेजों से उधारी के प्राध्यापक लाये जाते हैं. यह सिलसिला पिछले अनेक वर्षों से जारी है. स्टॉफ की कमी से स्वास्थ्य सेवा पर सीधा असर पड़ रहा है. जिस वार्ड में 5-6 नर्से होनी चाहिए, वहां महज 2 ही नर्से उपलब्ध हो पाती है. जबकि एक वार्ड में बेड की संख्या 30 से अधिक होती हैं. सरकार द्वारा मेडिकल कॉलेजों को हर वर्ष उपलब्ध कराई जाने वाली निधि में पिछले 5 वर्षों से कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है. कुल बजट में से 70 फीसदी रकम खरीदी महामंडल को देना पड़ता है. इस निधि से उपकरण सहित दवाइयां उपलब्ध कराई जाती है.

इस हालत में मेडिकल कॉलेजों के पास महज 30 फीसदी रकम ही बचती है. लोकल पर्चेस के अधिकार भी कम होते जा रहे हैं. दवाई आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बिलों का निपटारा जल्दी नहीं होने से समय पर दवाइयों की आपूर्ति नहीं की जाती. इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है. जब भी किसी मेडिकल कॉलेज में कोई घटना सामने आती है तब सरकार द्वारा वादे किये जाते है लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन वादों और आश्वासनों की हवा निकल जाती है.