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    • 5,000 किलो रहता है सिंगल यूज 
    • सिंगल यूज पॉलिथीन का निर्माण, बिक्री और उपयोग धड़ल्ले से जारी

    नागपुर. न हम सुधर रहे हैं और न ही दूकानदार. ग्राहक पॉलिथीन की मांग करते हैं, दूकानदार उपलब्ध कराते हैं. सुविधा के आगे हम अपनी सृष्टि के साथ भरपूर खिलवाड़ कर रहे हैं. जाने-अनजाने ही सही, भविष्य के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं. बरसात में होने वाली बाढ़, ओवरफ्लो के लिए यही प्लास्टिक जिम्मेदार है. भाषण भरपूर देते रहते  हैं लेकिन प्लास्टिक का मोह हमसे नहीं छूटता. घर-ऑफिस हो या गली की छोटी दूकान या फिर सड़क किनारे के ठेले-खोमचे, हर रोज सैकड़ों किलो प्लास्टिक और पॉलिथीन कचरे के रूप में निकल रहा है.

    आलम यह है कि अगर कोई नाली या नाला जाम हो जाए तो उसमें 80 फीसदी कचरा प्लास्टिक ही होता है. इसमें 30 फीसदी घरों से निकलता है. लोग प्लास्टिक से बनी चीजें और पॉलिथीन किसी न किसी रूप में इतना ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं कि पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. 1 जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लग रहा है लेकिन अभी भी ‘भाषणों’ का दौर जारी है. बैन के बाद क्या परिस्थिति में सुधार देखने को मिलेगा? यह बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है.

    धरपकड़ से और वसूली का धंधा

    आए दिन मनपा की टीम कारोबारियों पर कार्रवाई करती है और दूकानों पर जुर्माना लगाती है. बावजूद इसके न तो उत्पादन बंद हुआ और न ही सप्लाई चेन. सभी को पता है कि माल कहां से आ रहा है और कहां बेचा जा रहा है लेकिन इस मुद्दे पर सभी खामोश रहते हैं. महाराष्ट्र में सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन पर भी बैन है. बावजूद इसके प्लास्टिक का आना सभी को आश्चर्य में डालता है. कंपनियां भी बिंदास उत्पादन कर रही हैं. 

    कैसे बनेगी जीरो पॉलिथीन सिटी

    सिटी में हर दिन करीब 40-50 टन (50,000 किलो) प्लास्टिक कचरा निकलता है. इसका निस्तारण बहुत मुश्किल हो गया है. इन्हें जलाने से हवा प्रदूषित होती और जमीन में गाड़ने से मिट्टी. बारिश के समय शहर के अधिकांश नाले भी इसी की चलते जाम हो रहे हैं. इसके चलते जीरो पॉलिथीन सिटी की राह में कई चुनौतियां हैं. इसके डिस्पोज की कोई व्यवस्था मनपा नहीं कर पाई है. 1 जुलाई से पुन: पूर्ण प्रतिबंध की बात खुद प्रधानमंत्री ने की है, यह अधिकारियों के लिए भी कम बड़ी चुनौती नहीं है. 

    भिखारी, कबाड़ वालों की मेहरबानी

    पर्यावरण मुद्दों के जानकार कौस्तुभ चटर्जी कहते हैं कि रोजाना लगभग 40-50 मीट्रिक टन प्लास्टिक में से 10-15 टन प्लास्टिक भिखारी और कचरा उठाने वाले कर्मचारी जमा करते हैं और कबाड़ियों को देते हैं. समाज को इनके प्रति ऋणी होना चाहिए. आज भांडेवाड़ी में हालत बद से बदतर हो गई है कि क्योंकि प्लास्टिक वेस्ट को डिस्पोज करने की कोई व्यवस्था ही नहीं की गई है. पहाड़ बन रहे हैं. जल्द से जल्द इसकी पर्यायी व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले समय में स्थिति और विकट हो जाएगी. सक्षम और जिम्मेदार विभाग के लिए अब कठोर कदम उठाने का समय आ गया है. 

    बोतल, डिस्पोजल, स्नैक्स के कचरे अधिक

    शहर में सबसे ज्यादा सिंगल यूज पॉलिथीन के अलावा प्लास्टिक की पानी बोतल, डिस्पोजल, प्लेट और स्नैक्स जैसे नमकीन, मिक्चर आदि के मोटे पॉलिथीन का कचरा ज्यादा हो रहा है. इसका हर छोटी-बड़ी दूकान से लेकर छोटे ठेले-खोमचे में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है. प्लास्टिक की पानी बोतल छोटी व बड़ी का घर से लेकर ऑफिस और वैवाहिक कार्यक्रमों में उपयोग हो रही है.

    चोरी छुपे उत्पादन

    जिले में वैसे तो 400 से अधिक फैक्ट्रियां हैं लेकिन अधिकांश इकाइयों ने उत्पादन पर विराम लगा दिया है. मानक के अनुरूप प्लास्टिक उत्पादों का उत्पादन किया जा रहा है लेकिन जानकारों की मानें तो शहर में अब भी 50-75 ऐसी कंपनियां हैं जो सिंगल यूज प्लास्टिक का उत्पादन कर रही हैं. छुपे नेटवर्क के जरिए ये बिक्री करती हैं. पकड़े जाने पर जुर्माना भरकर छूट जाते हैं.  इसी प्रकार गुजरात से बड़े पैमाने पर प्लास्टिक मंगवाया जा रहा है. अधिकारियों को पूरी जानकारी है लेकिन ये पकड़े नहीं जाते हैं. 

    तय है मानक

    2018 में पॉलिथीन के लिए 50 माइक्रोन का मानक निर्धारित किया गया था. इसके तहत पतले पॉलिथीन पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी. बावजूद मार्केट में सभी जगह उपलब्ध है. 1 जुलाई से सिंगल यूज बंद हो रहा है जबकि 1 जनवरी से 120 माइक्रोन तक के प्लास्टिक उत्पाद बनाना प्रतिबंधित हो जाएगा. 

    यहां से आ रहा प्लास्टिक कचरा

    -जनरल स्टोर- प्लास्टिक व पॉलिथीन से पैकेजिंग वाले आइटम.

    -छोटी दूकानें- नमकीन के आइटम, वेफर्स, चिप्स, मिक्चर, डिस्पोजल, पानी बॉटल, पानी पाउच, कोल्ड ड्रिंक, दूध  आदि.

    -पान दूकान- गुटखा, पान मसाले के पाउच, खर्रा की पन्नी.

    -रेस्टोरेंट और होटल- सिल्वर रंग की पॉलिथीन में खाने की पैकेजिंग, प्लास्टिक के बर्तन, प्लेट, चम्मच आदि.

    -ठेला-खोमचे-  प्लास्टिक की प्लेट, गिलास, चम्मच.

    -सब्जी मार्केट, मटन मार्केट- पॉलिथीन.

    -डेयरी- दूध, लस्सी, श्रीखंड, मठा, ब्रेड सहित अन्य बेकरी आइटम.

    -मेडिकल स्टोर व अस्पताल- दवाइयों के डिब्बे, सलाइन व अन्य मटेरियल.

    इन चीजों पर लगेगा प्रतिबंध, एक जुलाई के बाद के आदेश

    प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के नियम 4,2 के अनुसार पॉलीस्टाइरिंग के उत्पाद, इंपोर्ट, स्टॉकिंग, सप्लाई एवं बिक्री व उपयोग पर रोक लगाई जा रही है जिसके तहत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के धारा 15 के तहत एक लाख का जुर्माना और 5 वर्ष की कैद की सजा का प्रावधान है. जब्ती की कार्रवाई से लेकर प्रतिष्ठान को बंद किया जाना है. 1 जुलाई से पहले सिंगल यूज प्लास्टिक की रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना था.

    1. थर्मोकोल के कप, प्लेट, ग्लास और कटोरी

    2. प्लास्टिक बैनर

    3. प्लास्टिक कप प्लेट, ग्लास, कटोरी, कांटा, चम्मच

    4. प्लास्टिक से बनी सजावट की सामग्री

    5. प्लास्टिक परत वाले कागज के प्लेट

    6. ईयर बड्स, गुब्बारे, झंडे,

    7. प्लेट, कप, गिलास, चम्मच, चाकू, स्ट्रा

    8. पानी के पाउच और पैकेट्स

    9. ट्रे जैसी कटलरी, मिठाई के डिब्बों के चारों ओर लपेटी जाने या पैकिंग करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, स्टिरर.