
नागपुर. निर्धन व जरूरतमंदों के लिए अब शासकीय अस्पताल ही एकमात्र सहारा बने हुए हैं लेकिन उपकरणों की दुरुस्ती सहित आवश्यक सामग्री की आपूर्ति में की जा रही देरी की वजह से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डेढ़ महीने तक कैथ लैब बंद थी. अब एक बार फिर हृदय रोग विभाग की धड़कनें धीमी हो गई हैं. ‘डाय’ खत्म होने से शल्यक्रिया प्रक्रिया पर असर पड़ सकता है. वहीं ‘कॉन्ट्रैक्ट’ के अभाव में एंजियोप्लास्टी और एंजियोग्राफी की गति की धीमी हो गई है.
सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डेढ़ महीने कैथ लैब बंद होने से एंजियोप्लास्टी की प्रक्रिया रोक दी गई थी. अस्पताल में कैथ लैब, फेब्रोस्कैन सहित ९९ तरह की मशीनें हैं. इन मशीनों की वारंटी खत्म होने के बाद उनके मेंटेनेंस पर हर वर्ष 1.5 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ती है. लेकिन विदर्भ के शासकीय अस्पतालों को उपकरणों की देखभाल के लिए राज्य सरकार द्वारा समय पर निधि नहीं दी जाती.
कंपनियों के साथ एएनसी और सीएनसी का करार नहीं होता. इस वजह से कैथ लैब या अन्य उपकरण बंद होने से कंपनियों द्वारा दुरुस्ती रोक दी जाती है. पिछले दिनों कैथ लैब मशीन का पार्ट जर्मनी से मंगाया गया. पार्ट लगाने के बाद मशीन शुरू हुई लेकिन अब ‘डाय’ खत्म होने से एक बार फिर कैथ लैब के बंद होने की संभावना बढ़ गई है.
मरीजों की लंबी वेटिंग
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शासकीय अस्पतालों पहले की तुलना में मरीजों की संख्या बढ़ी है. सुपर में केवल विदर्भ या महाराष्ट्र के ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और तेलंगाना के भी मरीज आते हैं. लेकिन वेटिंग लिस्ट लंबी होने से मरीजों को तकलीफ सहन करना पड़ रहा है. शासकीय योजना के अतंर्गत नि:शुल्क ऑपरेशन हो जाते हैं. जबकि निजी अस्पतालों में जाकर उपचार और ऑपरेशन कराने में असमर्थ मरीजों के पास इंतजार करने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रह गया है.