Online education system failed in Tehsil

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    नागपुर. राज्य के कई दूरदराज इलाकों में शिक्षा की दुरावस्था तथा स्कूली शिक्षा पाने वाले बच्चों को पोषण आहार की त्रासदी को लेकर हाई कोर्ट की ओर से स्वयं संज्ञान लिया गया था. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने केंद्र व राज्य सरकार और स्थानीय निकाय संस्थाओं की इस संदर्भ में लापरवाही को देखते हुए नाराजगी जताई थी. साथ ही अदालत ने अगली सुनवाई तक हाई कोर्ट के आदेशों के अनुसार हलफनामा दायर नहीं किया गया तो केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव और राज्य के मुख्य सचिव को अदालत में हाजिर रहने के आदेश देने के संकेत दिए.

    हाई कोर्ट की ओर से कहीं विपरीत आदेश न जारी किए जाएं इसे लेकर केंद्र और राज्य सरकार की हड़बड़ाहट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों प्रतिवादियों की ओर से बताया गया कि शपथपत्र तैयार है लेकिन उसे दायर करना बाकी रह गया है. इसके बाद अदालत ने दोनों को एक सप्ताह का समय प्रदान किया. अदालत मित्र के रूप में अधि. फिरदौस मिर्जा ने पैरवी की. 

    न अच्छी इमारतें और न ही पर्याप्त शिक्षक

    अदालत ने आदेश में स्पष्ट कहा था कि राइट ऑफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट 2009 बनाया गया. यहां तक कि राष्ट्रीय फूड सिक्योरिटी एक्ट 2013 में स्कूल जाने वाले बच्चों को पोषण आहार देने का नियम तैयार किया गया. देश में महामारी शुरू होने के कारण 21 मार्च 2020 से लॉकडाउन लगाया गया जिसके बाद से ऑनलाइन एजुकेशन शुरू हो गया है. 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा की अनिवार्यता तो लागू की गई लेकिन इसके लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं.

    विशेष रूप से राज्य के दूरदराज इलाकों में न तो स्कूल की पुख्ता इमारतें है और न ही स्कूलों में पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक उपलब्ध हैं. बच्चों को पढ़ाने के लिए अध्यापन के उपकरण तक उपलब्ध नहीं कराए गए. इसके अलावा कई इलाकों में अच्छी सड़कें तक नहीं हैं जिससे बारिश के दौरान बच्चे स्कूल तक नहीं जा सकते हैं. 

    24 बाय 7 चाहिए इंटरनेट सेवा

    • अदालत ने आदेश में कहा कि निश्चित ही महामारी के चलते ऑनलाइन शिक्षा ही एक विकल्प रहा है लेकिन इसके लिए 24 बाय 7 इंटरनेट और बिजली की व्यवस्था होना जरूरी है. 
    • इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं होने के कारण कई स्कूल बिजली और इंटरनेट की सुविधाओं से वंचित हैं जिससे बच्चों को निरंतर शिक्षा उपलब्ध कराना संभव नहीं हो रहा है. याचिका में बताया गया कि तमाम खामियों को लेकर केंद्र व राज्य सरकार और स्थानीय जिम्मेदार एजेन्सी द्वारा इसे गंभीरता से लेना चाहिए था. किंतु अब तक इसे गंभीरता से नहीं लिया गया है. 
    • इस संदर्भ में नोटिस जारी होने के बाद केवल गड़चिरोली जिलाधिकारी की ओर से हलफनामा दायर किया गया, जबकि अन्य प्रतिवादियों ने कोई जवाब नहीं दिया है. अत: 24 बाय 7 बिजली और इंटरनेट सेवा उपलब्ध कराने के संदर्भ में क्या किया जा रहा है, इसकी जानकारी के साथ जवाब दायर करने के आदेश जारी किए थे.