क्या विपक्ष के बिना चल पाएगी विधानसभा, कामकाज में हिस्सा लेने पर बनी है आशंका

    Loading

    नागपुर. विधानमंडल के शीत सत्र का पहला सप्ताह काफी हंगामेदार रहा है. लेकिन संभवत: यह पहली बार हुआ है कि जहां सत्तापक्ष सदन के भीतर आक्रामक रहा वहीं विपक्ष सदन के बाहर ताकत दिखाता रहा है. यहां तक कि सदन में न्याय नहीं मिलने के कारण वाकआउट कर चुके विपक्ष ने अंतिम दिन तो सदन के कामकाज में हिस्सा तक नहीं लिया जिससे अब एक डेडलॉक तैयार हो गया है. एक ओर जहां विपक्ष की अनुपस्थिति में केवल कुछ ही कामकाज को अंजाम दिया गया वहीं आधे दिन के बाद से सदन की कार्यवाही भी स्थगित कर दी गई. हालांकि सदन की एक सदस्य के निधन के कारण कामकाज स्थगित कर दिया गया लेकिन उसके पूर्व आधे दिन तक सदन में विपक्ष नहीं होने से यह मसला चर्चा का विषय बना रहा है. अब सोमवार से पुन: विधानमंडल का कामकाज शुरू होगा. किंतु विधानसभा से वाकआउट कर चुके विपक्ष द्वारा कामकाज में हिस्सा लेने पर आशंका बनी हुई है.

    औपचारिक बनी सदन की कार्यवाही

    शीत सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के अलावा कुछ विधेयक सदन के समक्ष रखे गए. आम तौर पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा जब सदन में विधेयक मत के लिए रखे जाते हैं तो विपक्ष की उपस्थिति के समय उसे मंजूरी के लिए सत्तापक्ष की ओर से जोर की आवाजों से मंजूरी की मांग रखी जाती है लेकिन चूंकि अंतिम दिन सदन में विपक्ष अनुपस्थित था, अत: सदन में रखे गए विधेयक की मंजूरी भी केवल औपचारिक ही रही. राजनीतिक जानकारों के अनुसार आम तौर पर सदन के भीतर विपक्ष द्वारा सत्तापक्ष की नीतियों का विरोध कर हंगामा किया जाता है लेकिन इस सत्र में अधिकांश समय सत्तापक्ष की ओर से ही हंगामा किया गया. जब न्याय देने वाली सरकार ही सत्तापक्ष की हो तो उसे हंगामा क्यों करना पड़ा? यह भी चर्चा का विषय बना रहा है. 

    अध्यक्ष के कामकाज पर उठा रहे सवाल

    विपक्ष की ओर से विधानसभा अध्यक्ष के कामकाज पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं. विपक्ष के कई नेताओं ने तो सदन में ही इस बात पर आपत्ति जताई कि सत्तापक्ष के सदस्यों को अधिक मौका दिया जाता है. हालांकि उन्हें मौका देने पर कोई आपत्ति नहीं है लेकिन उसकी तुलना में कम से कम 2-4 विपक्ष के सदस्यों को भी मौका दिया जाना चाहिए. लेकिन जब विपक्ष के सदस्यों से बोलने का मौका मांगा जाता है तो अध्यक्ष की ओर से हमेशा नियमों का हवाला दिया जाता है. विपक्ष के सदस्यों का मानना है कि वैसे तो न्यायालय विचाराधीन मामले होने के कारण विपक्ष को मुद्दों पर चर्चा करने से रोका जाता है. वहीं न्यायप्रविष्ट मामला होने के बाद भी सत्तापक्ष के सदस्यों को लगातार बोलने की अनुमति दी जाती है. ऐसे में यदि विपक्ष विरोध करे तो सत्तापक्ष की ओर से हंगामा किया जाता है. सत्र के दौरान तो विपक्ष से अधिक सत्तापक्ष के सदस्य वेल में उतरे.