Nashik Municipal Corporation
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    नाशिक : आर्थिक लाभ (Financial Benefits) दिलाने वाले ठेकेदारों (Contractors) को काम का टेंडर (Tender) देने के लिए क्लब टेंडर (Club Tender) निकालने की परंपरा महानगरपालिका (Municipal Corporation) में शुरू हो गई है। बड़े ठेकेदारों के लिए होने वाली यह रिंग छोटे ठेकेदारों को बर्बाद कर रही है।  इसे लेकर नाशिक जिला ठेकेदार संगठन ने महानगरपालिका के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है। 

    विभिन्न  कामकाज का अलग-अलग टेंडर निकाला होता तो महानगरपालिका को 150 करोड़ रुपए की बचत होती, यह दावा संगठन ने किया है।  नियम के तहत हर एक कामकाज का टेंडर निकालना अनिवार्य होने के बादवजूद सड़क का काम आर्थिक लाभ दिलाने वाले बड़े ठेकेदारों को दिलाने के लिए महानगरपालिका के निर्माण विभाग ने पिछले वर्ष दिसंबर महीने में 260 करोड़ रुपए के सड़क कामकाज का टेंडर जारी किया था।  टेंडर निकालने के बाद 10 कंपनों के नाम सामने आए। विशेष बात यह है कि काम का एकत्रीकरण करते समय रिंग करने से टेंडर 20 से 25 प्रतिशत अधिक दर से आया।  हर एक कार्य का स्वतंत्र टेंडर प्रसिद्ध किया होता तो स्पर्धा होने से कम दर में टेंडर आता। साथ ही एक कंपनी के बजाए अनेक छोटे-छोटे ठेकेदारों को काम मिलता।

    महानगरपालिका का 50 से 60 करोड़ रुपए बच सकता था, लेकिन आर्थिक लाभ दिलाने वाले बड़े ठेकेदारों को काम दिलाने के लिए महानगरपालिका का आर्थिक नुकसान किया गया।  इस बारे में महानगरपालिका कैलास जाधव को ज्ञापन सौंपा गया।  लेकिन  कोई कार्रवाई नहीं हुई।  इसके बाद इस साल नवंबर में 245 और दिसंबर में 195 करोड़ रुपए का टेंडर जारी करते हुए उसी तरीके का उपयोग किया। ऐसा आरोप नाशिक जिला ठेकेदार संगठन ने लगाया।  अलग-अलग टेंडर जारी किया होता तो महानगरपालिका का नुकसान भी नहीं होता और छोटे ठेकेदारों को काम भी मिलता।  तीन टेंडर में रिंग करने से महानगरपालिका के खिलाफ संगठन के अजिंक्य जायभावे ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की है।  एन. के.  वर्मा, एम.जी. नायर, गजानन कन्स्ट्रक्शन, पेखले इन्फ्रास्ट्रक्चर, विनोद लुथरा, बी.  आर. चोपड़ा, पवार-पाटकर, बी. पी. सांगले, बी. टी. कडलग, आकार कन्स्ट्रक्शन, आनंद कंस्ट्रॉवेल आदि कंपनियों को बार-बार ठेका दिया जा रहा है। 

    न्यायालय जाने पर दी जा रही है धमकी

    260 करोड़ रुपए के पहले टेंडर प्रक्रिया में आर. एम.  के.  इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को अपात्र घोषित किया गया।  इसलिए कंपनी ने न्यायालय से गुहार लगाई है।  इसके बाद जो कंपनी महानगरपालिका के खिलाफ न्यायालय जाएगी उसे काम न देने की धमकी दी जा रही है।