onion farmer
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नासिक : विगत कुछ दिनों से राज्य के प्याज उत्पादक (Onion Growers) किसानों (Farmers) की जारी प्रताड़ना रूकने के लिए तैयार नही है। राज्य सरकार (State Government) ने अनुदान घोषित करने के बावजूद मंडियों (Markets) में एक किलो प्याज के लिए 25 पैसे का दाम मिल रहा है। इसके बाद किसान निराश और हताश हो गए है। हजारों किलो प्याज बिक्री करने के बावजूद किसानों का उत्पादन खर्च वसूल नहीं हो रहा है। अनेक किसानों पर प्याज बिक्री करने के बाद पैसे लेने के बजाए देने की नौबत आ रही है। शिंदे सरकार ने वित्तीय बजट अधिवेशन में प्याज को प्रति क्विंटल 350 रुपए अनुदान घोषित किया था, लेकिन यह अनुदान अब प्याज उत्पादकों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। अनुदान की अपेक्षा से किसान अपनी प्याज बिक्री के लिए मंडी में पहुंच रहे है। मंडीयों में प्याज की बड़े पैमाने पर आवक हो रही है, जिसका असर दामों पर होने की जानकारी सामने आई है। राज्य सरकार ने 27 मार्च को प्याज के लिए प्रति क्विंटल 350 रुपए अनुदान का आदेश घोषित किया था, लेकिन इसमें 31 मार्च तक बिक्री होने वाले प्याज अनुदान का लाभ देने की शर्त रखी गई थी, इसलिए किसान एक साथ प्याज बिक्री के लिए मंडियों में पहुंच रहे है। आवक बढ़ने के कारण यह स्थिति निर्माण होने की बात कही जा रही है। जिले में प्याज की प्रमुख मंडी सिन्नर, सटाणा, नांदगाव, उमराणे और देवला में प्याज के लिए प्रति किलो 25 पैसे का दाम मिलने की जानकारी सामने आई है। 

घोषणा का समय गलत

वित्तीय बजट अधिवेशन के दौरान विरोधियों ने प्याज के दामों को लेकर विधि मंडल में जोरदार चर्चा हुई। इस पार्श्वभूमी पर राज्य सरकार ने एक समिति नियुक्त की। इस समिति की सिफारिश के अनुसार प्याज उत्पादक किसानों को अनुदान देने का निर्णय किया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा में प्रति क्विंटल प्याज को 300 रुपए के अनुदान की घोषणा की थी। इसमें बाद में 50 रुपए की वृद्धि कि गई, लेकिन इस निर्णय पर अमल करने का समय गलत होने से किसानों को इसका लाभ न होने की बात विशेषज्ञ कर रहे है। 

अधिक समय देना जरूरी था

अनुदान का सरकारी निर्णय 27 मार्च को घोषित हुआ। प्याज बिक्री का समय 31 मार्च आखिर निश्चित किया गया। इसलिए किसानों को अपनी प्याज बिक्री करने के लिए केवल चार दिन मिले। प्याज बिक्री के लिए किसानों की मंडी में भीड़ लगी। प्याज की आवक बढ़ी। दामों में गिरावट आई। अगर इसका समय 15 दिनों का किया होता तो किसानों का नुकसान नहीं होता।