Maharashtra Pollution Control Board MPCB

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नासिक: मुंबई, पुणे, नागपुर, औरंगाबाद, नासिक सहित राज्य भर के छोटे अस्पतालों (Small Hospitals) में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अनिवार्य (Sewage Treatment Plant) कर दिया गया है। इसके लिए महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPCB) की वेबसाइट पर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए गए हैं। जिन अस्पतालों ने उपचारात्मक उपाय नहीं किए हैं, उन्हें तत्काल ऐसा करना होगा, वरना एमपीसीबी ने अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई के संकेत दिए हैं।

एमपीसीबी के अधिकारियों ने कहा कि बायोमेडिकल कचरे के प्रभावी निपटारे और पर्यावरण पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए 10 से अधिक बेड वाले अस्पतालों के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अनिवार्य कर दिया गया हैं।

बायोमेडिकल वेस्ट गाइडलाइंस में संशोधन के बाद बदले नियम

एमपीसीबी के अनुसार, पहले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मुख्य रूप से 100 से अधिक बेड वाले अस्पतालों के लिए अनिवार्य था, लेकिन केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बायोमेडिकल वेस्ट गाइडलाइंस में हालिया संशोधन के बाद छोटे अस्पताल भी अब इस नियम के दायरे में आ गए हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार बायोमेडिकल कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण करने की आवश्यकता है, जिसे पृथक्करण और उपचार कैसे किया जा सकता है।

सहमति पत्र प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया

मंत्रालय के मुताबिक, इससे पर्यावरण और लोगों पर बायोमेडिकल वेस्ट के प्रतिकूल प्रभाव में कमी आएगी। बायोमेडिकल कचरे के प्रभावी निपटारे के लिए अस्पतालों को आवश्यक तंत्र स्थापित करना चाहिए। सरकार के निर्देश के अनुसार सभी चिकित्सा प्रतिष्ठानों को 2019 तक अपशिष्ट जल प्रबंधन करना अनिवार्य है, लेकिन उसका अनुपालन पूरा होता नहीं दिख रहा है। उसमें एमपीसीबी ने उन सभी प्रतिष्ठानों के लिए अनिवार्य कर दिया है, जो चिकित्सा प्रतिष्ठानों से जैव-ठोस अपशिष्ट और सीवेज का पानी उत्पन्न करते हैं। एमपीसीबी से 4 फरवरी, 2022 के ‘बीएमडब्ल्यू’ नियमों के अनुसार सहमति पत्र प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है।

उत्तर महाराष्ट्र के 80 फीसदी संस्थानों में प्लांट नहीं

 देखने में आ रहा है कि महाराष्ट्र में बीएमडब्ल्यू के नियमों का पूर्ण अनुपालन नहीं हो रहा है, जबकि नासिक में गोदावरी नदी का प्रदूषण एक समस्या है। नासिक या उत्तरी महाराष्ट्र में लगभग 80 प्रतिशत चिकित्सा संस्थानों में सीवेज उपचार प्लांट नहीं हैं और उनका सीवेज भी गोदावरी में मिल रहा है। राज्य की विभिन्न नदियां और उनके किनारे बसे शहर प्रमुख प्रदूषणकारी भूमिका निभा रहे हैं।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी जैव चिकित्सा अपशिष्ट दिशा-निर्देशों के संशोधन में कहा गया है कि 10 बिस्तरों से अधिक वाले अस्पतालों में सीवेज उपचार प्रणाली होनी चाहिए। मंत्रालय के पहले के दिशा-निर्देशों के अनुसार, यह नियम 100 बिस्तरों से अधिक वाले अस्पतालों पर लागू था, लेकिन मौजूदा संशोधन में यह नियम अब 10 बेड से कम या ज्यादा वाले अस्पतालों पर भी लागू होगा।

- राजेंद्र राजपूत, क्षेत्रीय अधिकारी, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड