फाइल फोटो
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    मुंबई: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले के मुख्य गवाह के कोर्ट में दिए बयान पर देश में फिर से बवाल मच गया है। गवाह ने अदालत में बताया कि, महाराष्ट्र एटीएस और जांच एजेंसियों ने उसपर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं का नाम लेने के लिए प्रताड़ित किया गया था। वहीं अब इसपर एआईएमआईएम विधायक खलीक ने बयान दिया है। विधायक ने कहा कि, 12 साल बाद कोई यह कहे तो यह राजनीति और सच्चाई से कोसों दूर है। 

    महाराष्ट्र विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए खलीक ने कहा, “अब 5 राज्यों में आगामी चुनावों के साथ, 13-14 वर्षों के बाद एक गवाह को यह दावा करने के लिए कि उन्हें योगी आदित्यनाथ और अन्य आरएसएस सदस्यों का झूठा नाम देने के लिए मजबूर किया गया था, राजनीति और सच्चाई से बहुत दूर लगता है।”

    बतादें कि, 2008 के मालेगांव ब्लास्ट मामले में उस समय नया मोड़ आगया जब, एक गवाह ने महाराष्ट्र एटीएस और जांच एजेंसियों पर आरएसएस नेताओं को इस मामले में नाम लेने का दवाब बनाने का आरोप लगाया। गवाह ने सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि, “ब्लास्ट केस में तत्कालीन जांच एजेंसी एटीएस और बाद की जांच एजेंसियों ने उसे प्रताड़ित किया था। गवाह ने आगे कहा, एटीएस ने उसे योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के 4 अन्य लोगों का गलत नाम लेने के लिए मजबूर किया।

    मालेगांव ब्लास्ट केस

    29 सितंबर 2008 में राजधानी मुंबई से 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में एक बाइक में बम ब्लास्ट हुआ था। बीच बाजार में हुए इस ब्लास्ट में छह लोग की जान गई थी और 100 लोग घायल हुए थे। मालेगांव ब्लास्ट के बाद तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस को सौंप दी थी, जिसके बाद एटीएस ने ब्लास्ट के आरोप में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के अलावा एलटी कर्नल पुरोहित, चतुर्वेदी, कुलकर्णी, अजय रहीरकर, सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय और सुधाकर द्विवेदी भी मामले में आरोपी हैं।

    उन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। आरोपों में यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य करना) और 18 (आतंकवादी कृत्य करने की साजिश करना) और धारा 120 (बी) (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 324 (स्वेच्छा से पैदा करना) शामिल हैं। इसी के साथ  आईपीसी की धारा 153 (ए) (दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) को भी शामिल किया गया है।