Sugarcane payment of one lakh crore rupees made to 47 lakh farmers in three years in Uttar Pradesh
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    पुणे. गन्ना पेराई सत्र 2020-21 (Sugarcane Crushing Season 2020-21) से पहले, महाराष्ट्र (Maharashtra) के चीनी कमिश्नर (Sugar Commissioner) ने मिलों को उनके भुगतान इतिहास (Payment History) के आधार पर कलर कोड देने का निर्णय लिया है। चीनी कमिश्नर शेखर गायकवाड़ ने कहा कि यह एक तैयार गाइड के रूप में काम करेगा जिससे किसानों (Farmers) को यह तय करने के लिए मदद मिलेगी की अपना गन्ना कहां बेचा जाए।

    नियमों के अनुसार, मिलों को गन्ना बेचने के 14 दिनों के भीतर किसानों को सरकार द्वारा घोषित उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) का भुगतान करना अनिवार्य है। गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 में दोषी मिलों पर नकेल कसने का प्रावधान है। जिसमें बकाया भुगतान की वसूली शामिल है, उसे अमल में लाने में समय लगता है। इसके लिए चीनी आयुक्तों को पहले मिल को त्रुटिपूर्ण घोषित  करना होता है, जिसके बाद जिला कलेक्टर बकाया की वसूली के लिए मिल के चीनी स्टॉक की नीलामी करते हैं। 

    समय पर भुगतान न होने से किसानों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर

    इस तथ्य को देखते हुए कि गन्ना एक वर्ष से अधिक समय तक खेत में रहता है, इसलिए भुगतान में देरी किसानों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। जानकारों की माने तो इस देरी का फसल ऋण आदि की अदायगी के मामले में किसानों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है। 

    हरा, पीला और लाल रंग कोड 

    अब, मिलों के पिछले भुगतान व्यवहार के आधार पर, गायकवाड़ के कार्यालय ने उन्हें लाल, पीले और हरे रंग के रूप में रंग दिया है। जिन मिलों को हरे रंग के रूप में चिह्नित किया गया है, उन्होंने समय पर अपने एफआरपी का भुगतान किया है, पीले और लाल रंग वाले मीलों ने भुगतान में देरी किया है। लाल टैग वाली मिलों ने अपने भुगतान में काफी देरी की थी और इसलिए पूर्व में इन चीनी मीलों पर कमिश्नर द्वारा कार्रवाई की गई थी। 

    भुगतान करने के लिए धन जुटाना मुश्किल होगा

    मिलों की कलर कोडिंग से किसानों को अपना गन्ना बेचने का फैसला करने से पहले मिलों के भुगतान व्यवहार को जानने में मदद मिलेगी। जबकि किसान, जो सहकारी मिलों के शेयरधारक हैं, उन्हें गन्ने का एक हिस्सा मिलों को बेचना अनिवार्य है। निजी मिलों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। लेकिन अब, भुगतान में चूक करने वाली मिलों को अपने किसानों को तुरंत भुगतान करने के लिए धन जुटाना मुश्किल होगा।