प्रसिद्ध गुरुवायूर मंदिर के अगले मुख्य पुजारी हैं आयुर्वेदिक डॉक्टर से लेकर यू-ट्यूबर, व्लॉगर और गायक

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    त्रिशूर: केरल के त्रिशूर स्थित प्रसिद्ध गुरुवायुर मंदिर के अगले ‘मेलशांति’ यानी मुख्य पुजारी एक आयुर्वेदिक डॉक्टर, यू-ट्यूबर और व्लॉगर होने के साथ-साथ एक गायक भी हैं।  चौतीस-वर्षीय डॉ. किरण आनंद कक्कड़ को बीते हफ्ते ड्रॉ के जरिये गुरुवायुर मंदिर का अगला मुख्य पुजारी चुना गया था। वह पुजारियों के घराने से ताल्लुक रखते हैं और रूस की राजधानी मॉस्को की एक आयुर्वेदिक क्लीनिक में छह वर्षों तक सेवाएं दे चुके हैं। डॉ. कक्कड़ अगले महीने गुरुवायुर मंदिर के ‘मेलशांति’ के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालेंगे। वह छह महीने तक मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में पूजा-अर्चना करेंगे।

    उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “यह ईश्वर की कृपा से हुआ। उन्हीं का आशीर्वाद है कि मुझे यह खुशनसीबी मिली है।” डॉ. कक्कड़ ने बताया कि गुरुवायुर मंदिर का ‘मेलशांति’ बनने के लिए आवेदन करने से पहले उन्हें कई ‘परिहार’ और पूजा से गुजरना पड़ा, ताकि ‘विदेश में रहने के दौरान शरीर पर पड़े बुरे और खतरनाक प्रभावों को खत्म किया जा सके।’  उन्होंने कहा कि परंपरा के अनुसार, विदेश जाने वाले लोगों को मंदिर के अनुष्ठान और गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति नहीं है, क्योंकि माना जाता है कि विदेश में रहने के दौरान ‘नित्यकर्म’ करना मुश्किल होता है, इसलिए ऐसे लोगों के शरीर पर कुछ बुरे प्रभाव पड़े होंगे।

    ‘नित्यकर्म’ ऐसे कर्मकांड हैं, जिन्हें हिंदुओं को रोज करना होता है। डॉ. कक्कड़ ने कहा, “इसका उपाय यह है कि आप स्वदेश लौटकर बुरे प्रभावों को खत्म करने के लिए कुछ कर्मकांड या ‘परिहार’ करें। मैं रूस में रहने के दौरान भी पूजा करता था, लेकिन मैंने ‘परिहार’ पूजा भारत लौटकर ही की।” यह पूछे जाने पर कि उन्होंने रूस में आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में छह साल लंबा सफल करियर क्यों छोड़ दिया, डॉ. कक्कड़ ने कहा कि उन्होंने अपने पिता की इच्छा के मुताबिक ऐसा किया। डॉ. कक्कड़ के अनुसार, “मेरी कई पुश्तें पुजारी रही हैं। मेरे पिता भी एक पुजारी हैं। वह गुरुवायुर मंदिर के चार ओथिक्कन परिवारों में से एक हैं।” उन्होंने कहा, “चूंकि, मेरे पिता बूढ़े हो रहे हैं, इसलिए उन्होंने मुझसे वापस आने और ओथिक्कन की जिम्मेदारियां संभालने को कहा।

    यही कारण है कि मैं लौट आया।” डॉ. कक्कड़ ने बताया कि ओथिक्कन श्रेणी के पुजारी मंदिर में ‘अभिषेक’ या पंथीरादि पूजा जैसे दैनिक अनुष्ठान करते हैं। उन्होंने कहा कि पिता से उनकी जिम्मेदारियां लेने के अलावा उनकी एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने की भी योजना है। हालांकि, ‘मेलशांति’ के रूप में डॉ. कक्कड़ को हर समय गुरुवायुर मंदिर के अंदर ही रहना पड़ेगा, इस कारण उन्हें क्लीनिक खोलने की अपनी योजना छह महीने के लिए टालनी होगी। उन्होंने कहा, “मैं घर तक नहीं जा सकता। हालांकि, छह महीने बाद नए ‘मेलशांति’ के अपनी जिम्मेदारियां संभालने पर मैं अपनी पुरानी दिनचर्या में लौट सकूंगा और आयुर्वेदिक डॉक्टर के रूप में कार्य कर पाऊंगा।”

    कम उम्र से ही वेदों का पाठ करने वाले डॉ. कक्कड़ वाद्य यंत्र ‘मृदंगम’ बजाना भी जानते हैं। वह कर्नाटक संगीत में भी प्रशिक्षित हैं। आयुर्वेदिक डॉक्टर बनने से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह मेरी किस्मत में लिखा था। बेटा पाने के लिए मेरे माता-पिता ने एक विशेष आयुर्वेदिक उपचार पद्धति ‘पुमसावन’ आजमाई थी।” डॉ. कक्कड़ ने कहा, “मेरे मामा को उन दवाओं और उपचार पद्धतियों के बारे में जानकारी थी, जिनसे यह संभव हो सकता था।

    चूंकि, मेरा जन्म एक ऐसी आयुर्वेदिक उपचार पद्धति के कारण हुआ था, इसलिए मैं इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहता था।” उन्होंने कहा, “आयुर्वेदिक डॉक्टर बनने की चाह में मैंने संगीत के लिए अपना जुनून भी नहीं छोड़ा। मैंने संगीत को अपने पेशे का हिस्सा बना लिया। एक पंचकर्म विशेषज्ञ के अलावा मैं एक संगीत थेरेपिस्ट के रूप में भी कार्य करता हूं।” डॉ. कक्कड़ के मुताबिक, संगीत थेरेपी के अभ्यास के अलावा उन्होंने कई संगीत एल्बम के लिए गाने गाये हैं और वह अपनी पत्नी के साथ मिलकर एक यू-ट्यूब चैनल भी चलाते हैं।  उन्होंने कहा, ‘‘हमारे यू-ट्यूब चैनल पर आपको हमारे गाए गाने, यात्रा से जुड़े वीडियो (ट्रैवल व्लॉग), रूस में रहने के अनुभव और स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे मिलेंगे।  (एजेंसी)