नई दिल्ली: लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence) मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) के बेटे आशीष मिश्रा (Ashish Teni) को दी गई जमानत (Bail) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया गया है। लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के परिवार के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की है। इसमें आशीष मिश्रा की बेल रद्द करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा है कि, उन्हें शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि राज्य सरकार जमानत देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने में विफल रही है। बीती 15 फरवरी को उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के लखीमपुर खीरी हिंसा (Lakhimpur Kheri Violence Case) मामले में आशीष मिश्रा को बेल मिलने के बाद जेल से रिहा कर दिया गया था। आशीष मिश्रा को इससे पहले कोर्ट से जमानत मिल गई थी। उन्हें हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बेल दी थी।
Family members of Lakhimpur Kheri case victims move the Supreme Court, seeking cancellation of bail granted to Union Minister of State for Home Affairs Ajay Mishra Teni’s son Ashish Mishra, who is an accused in the case. pic.twitter.com/sdCSA47qKd
— ANI (@ANI) February 21, 2022
मृत किसानों के परिवारों के तीन सदस्यों ने उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 10 फरवरी के जमानत आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए कहा कि यह फैसला कानून की नजर में टिकने लायक नहीं है क्योंकि इस मामले में राज्य द्वारा अदालत को कोई सार्थक और प्रभावी सहायता नहीं दी गई। जगजीत सिंह, पवन कश्यप और सुखविंदर सिंह ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर की गई याचिका में कहा, ”जमानत देने के लिए तय सिद्धांतों के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेश में राज्य द्वारा ठोस दलीलों की कमी रही और आरोपी राज्य सरकार पर पर्याप्त प्रभाव रखता है क्योंकि उसके पिता उसी राजनीतिक दल से केंद्रीय मंत्री हैं, जो राज्य की सत्ता में है।”
याचिका में कहा गया, ”उक्त आदेश कानून की नजर में टिकने योग्य नहीं है क्योंकि सीआरपीसी, 1973 की धारा 439 के पहले प्रावधान के उद्देश्य के विपरीत मामले में राज्य द्वारा अदालत को कोई सार्थक और प्रभावी सहायता नहीं मिली, जिसके तहत गंभीर अपराध से जुड़ी जमानत अर्जी के संबंध में आम तौर पर लोक अभियोजक को नोटिस दिया जाना चाहिए।” इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में स्थापित कानूनी मानदंडों के विपरीत एक ”अनुचित और मनमाना” निर्णय दिया गया, जिसने अपराध की जघन्य प्रकृति पर विचार किए बिना जमानत प्रदान की। आरोपी के जमानत आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुए याचिका में सबूतों का क्रमिक उल्लेख किया गया।
याचिका में कहा गया, ”आरोपी के निर्देश पर शांतिपूर्वक लौट रहे किसानों को जानबूझकर थार वाहन से कुचलने का कृत्य लापरवाही नहीं बल्कि एक पूर्व नियोजित साजिश थी क्योंकि आरोपी उसके बाद खेतों से होते हुए शाम लगभग चार बजे दंगल कार्यक्रम वाली जगह पर वापस आ गया और ऐसे पेश आया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।” याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने जमानत देते समय आरोपी के खिलाफ पुख्ता साक्ष्यों, पीड़ितों और गवाहों के संदर्भ में आरोपी की हैसियत, न्याय के दायरे से भागने और अपराध को दोहराने की संभावना पर विचार नहीं किया।
दरअसल लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के मामले में यूपी एसआईटी ने हाल ही में चार्जशीट दायर की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एसआईटी ने अपने चार्जशीट में आशीष को मुख्य आरोपी बताया था। साथ ही आशीष के घटनास्थल पर मौजूद रहने की भी बात कही थी।गौरतलब है कि यूपी के लखीमपुर खीरी में पिछले साल तीन अक्टूबर को तिकुनिया में हिंसा हुई थी। जिसमें आठ लोगों की जान गई थी। आरोप लगा था कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय टेनी के बेटे आशीष ने अपनी जीप से किसानों को कुचल दिया था। इस मामले में जमकर सियासी बयानबाजी हुई थी। कांग्रेस सहित तमाम दलों ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
(एजेंसी इनपुट्स के साथ)