- अब तक 405 गाँवों में पानी की समस्या हुई ख़त्म.
- बुंदेलखंड: सूखे की मार से हर साल लड़ता है.
- पानी का सिर्फ एक मुख्य स्रोत 'बेतवा' नदी.
- 'वन विलेज, वन पॉन्ड' से अब तक 405 गाँवों में पानी की समस्या ख़त्म हुई.
झांसी. एक तरफ जहाँ समूचा बुंदेलखंड सूखे की मार से हर साल लड़ता है। वहीं इस आपातकालीन परिस्तिथि से निपटने के लिए अब एक ऐसी योजना आरम्भ की है जिससे आज हर एक गांव के तालाब पानी से लबालब हो गए हैं । इसका पूरा श्रेय वहां के कर्मठ लोग और झांसी (Jhansi) जिले के DM आंध्रा वामसी को जाता है जिन्होंने ‘वन विलेज, वन पॉन्ड’ (One Village One Pond) योजना की शुरुआत की थी। उनकी इसी ख़ास पहल के चलते अब तक 405 गाँवों में पानी की समस्या ख़त्म हो गयी है और वहां के तालाबों को भी पुनर्जीवित किया गया है।
बुंदेलखंड और सूखा
दरअसल बुंदेलखंड में सूखा किसी से छिपा नहीं है। हर साल यहाँ के अधिकांश जलाशय सुख जाते हैं। अब इसी समस्या से निपटने के लिए झांसी के DM आंध्रा वामसी ने ने ‘वन विलेज, वन पॉन्ड’ का प्रयोग किया। इस मुद्दे पर DM आंध्रा वामसी ने बताया कि, कोरोना संक्रमण के चलते मार्च में लॉकडाउन हो गया था। इस लॉकडाउन के बाद अप्रैल और मई महीने में लगभग 11,000 प्रवासी श्रमिक वापस अपने कार्य पर लौटे। इन्ही प्रवासी श्रमिकों को फिर ‘वन विलेज वन पॉन्ड’ योजना में लगाया गया और इनसे अनेकों तालाब खुदवाए गए।
‘वन विलेज, वन पॉन्ड’ क्या था मूल विचार
वहीं DM आंध्रा वामसी ने बताया कि, “हमारा, तालाबों को फिर से जीवित करने के पीछे यह प्रमुख विचार यह था कि जिले की हर एक ग्राम पंचायत में खुद का एक तालाब हो। इतना ही नहीं यह तालाब भी ऐसा हो जो पानी से हमेशा भरा रहे जिससे इलाके में सूखे की स्थिति से बहुत हद तक दूर किया जा सके।”
अब तक जिले के 405 तालाब हुए लबालब
DM आंध्रा वामसी यह भी बताते हैं कि, “झांसी में कुल 496 ग्राम पंचायतें हैं। हमारी हर एक गांव में तालाब के हिसाब से 496 तालाब खोदने की योजना थी। इसके तहत अब तक 405 तालाब हमने खोद लिए हैं। इन सभी तालाबों में अब पानी भरा है।” इसके पीछे DM वामसी का मुख्य उद्देश्य यह था कि आपदा को कैसे अवसर में बदला जाए।
योजना के तहत 1.12 लाख लोगों को जोड़ा गया मनरेगा से
DM आंध्रा वामसी के अनुसार अब तक जिले में तक़रीबन 1.12 लाख लोगों को मनरेगा के जरिए जोड़कर इस योजना में शामिल किया जा चूका है। बता दें कि इसी मनरेगा योजना के तहत अब हर एक श्रमिक को रोज के काम के बदले 182 रुपये का भुगतान किया जाता है। वहीं अब तक इन तालाबों को खोदने में लगभग छह करोड़ रुपये का खर्च आ चूका है।
‘बेतवा’ जिले का एकमात्र पानी का स्रोत
बता दें कि झांसी में पानी का सिर्फ एक मुख्य स्रोत ‘बेतवा’ नदी है। गर्मियों में जहाँ सूखे के चलते पानी के लिए त्राहि-त्राहि मचती है। वहीं किसान भी इससे अछुता नहीं रहता। अब DM आंध्रा वामसी के इस योजना से सूखे के दौरान सिंचाई और अन्य उद्देश्यों के लिए पानी आसानी से हासिल होगा। इसके साथ ही तालाबों के भूजल स्तर में भी व्यापक सुधार होगा।
देखा जाए तो DM आंध्रा वामसी के एक सरल किन्तु क्रांतिकारी कदम से अब झांसी जिला आने वाले सूखे से निपटने को करीब करीब तैयार है। श्री वामसी और यहाँ के लोगों की इच्छाशक्ति ने एक दुष्कर कार्य को भी सरल कर दिया। फिर कहा भी गया है ‘जहाँ युक्ति वहां क्रांति’ लेकिन यहाँ पर इसके साथ प्रचंड इच्छाशक्ति और लोगों की मेहनत ने भी कमाल कर दिया है।