MBBS करने वाली पहली महिला सरपंच बनी राजस्थान की शहनाज़

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जयपुर. राजस्थान के भरतपुर ज़िले के छोटे से गांव कामां स्थित मेवात क्षेत्र में एक 24 साल की युवती शहनाज़ ख़ान ने इतिहास रच दिया। उन्होंने कामां क्षेत्र की ग्राम पंचायत गढ़ाजान में हुए सरपंच के उपचुनाव में सरपंच का पद अपने नाम कर लिया। 5 मार्च 2020 को गढ़ाजान पंचायत सरपंच पद पर उपचुनाव हुए थे, जिसके बाद शहनाज़ ख़ान ने चुनाव लड़ा और इशाक खान फौजी को 195 वोटों से हरा दिया।

वर्तमान में शहनाज़ एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है और वह इसी माह के अंत में गुरुग्राम के सिविल अस्पताल में अपनी इंटर्नशिप शुरू करेंगी। शहनाज की पूरी परिवरिश शहर में ही हुई है। शहनाज खान का कहना है उनके सरपंच बनने से समाज में लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता भी आएगी। शहनाज जिस मुस्लिम मेव समुदाय से आती हैं, वहां तो लड़कियों की हालत बहुत दयनीय है। उनका गांव से वास्ता बहुत ही कम रहा है। अभी तक वह सिर्फ गर्मियों की छुट्टियों में ही गाँव जाया करती थी लेकिन अब गाँव की दशा और दिशा बदलने का ज़िम्मा उन्हीं के कंधे होगा।

इस क्षेत्र में लड़कियों काे स्कूल तक नहीं भेजा जाता। शहनाज अपने गांव की सबसे युवा सरपंच बन गई हैं। उनके गांव में किसी भी लड़की ने इतनी पढ़ाई नहीं की। शहनाज ने कहा कि मेवात में लोग अपनी बेटियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं। मैं लड़कियों की शिक्षा पर काम करना चाहती हूं और उन सभी अभिभावकों को अपना उदाहरण दूंगी जो बेटियों को पढ़ने नहीं भेजते।

राजस्थान में पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम 10वीं कक्षा पास होना जरूरी है। लेकिन उनके दादा हनीफ खान को कोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के आधार पर चुनाव लड़ने के कारण अयोग्य ठहरा दिया गया था। शहनाज का पूरा परिवार राजनीति में ही है।  शहनाज़ का कहना है कि उत्तरप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को शैक्षिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से पिछड़ा माना जाता है, अब इस पिछड़ेपन को दूर करना मेरा मुख्य मकसद रहेगा। सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी जरूरतों के साथ-साथ स्वच्छता, और स्वास्थ्य सुविधाओं के क्षेत्र में विकास करने की भी वे कार्ययोजना तैयार कर रही हैं।

शहनाज ने कहा कि इसकी शुरुआत मेरी मां ने की थी। वो पहली महिला प्रधान बनीं, जिन्होंने गांव से पर्दा प्रथा खत्म की थी। बेटी की जीत पर शहनाज की मां जाहिदा खान का कहना है कि हमारा परिवार वंशवाद की मिसाल नहीं बल्कि इस बात की मिसाल है कि साल दर साल आप अपने काम को और बेहतर करते हुए लगातार चुनाव जीत सकते हैं।

अपने राजनीति में आने के फैसले पर शहनाज ने बताया कि “मुझसे पहले मेरे दादाजी भी इसी गांव के सरपंच थे, लेकिन वर्ष 2017 में किन्ही कारणों के चलते कोर्ट ने उनका निर्वाचन खारिज कर दिया, इसके बाद गांव और परिवार में यह चर्चा शुरू हो गई कि किसे चुनाव लड़ाया जाए, इसी बीच मेरा नाम सामने आया गया।”