Jharkhand

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    -ओमप्रकाश मिश्र 

    रांची: झारखंड स्टेट लाईवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा डायन कुप्रथा मुक्त झारखंड (Jharkhand) के निर्माण के लिए आयोजित कार्यशाला में कई तरह के तकनीकी सेशन का आयोजन हुआ। विभिन्न विभागों के समन्वय, शिक्षा और जागरुकता की जरुरत एवं साझा रणनीति को केन्द्र में रखकर विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी। कार्यशाला में मुख्य अतिथि के रुप में शिक्षाविद् डॉ. सुनीता रॉय (Dr. Sunita Roy) ने कार्यशाला की अध्यक्षता की। इस अवसर पर ग्रामीण विकास सचिव, डॉ मनीष रंजन ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि गरिमा परियोजना (Garima Project) तो एक शुरूआत है, हमारा लक्ष्य झारखंड को डायन कुप्रथा मुक्त बनाना है। गरिमा परियोजना के तहत भेधता मानचित्रण एवं ग्राम संगठन के प्रशिक्षण के जरिए डायन कुप्रथा उन्मूलन को गति दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल्द ही जेंडर मंच बनाया जाएगा, जिससे डायन कुप्रथा जैसे अंधविश्वास एवं भेदभाव को दूर कर जागरुक करने का काम किया जाएगा। गरिमा परियोजना अंतर्गत डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत के लिए जोर शोर से काम किया जाएगाI 

    उन्होंने कहा कि सखी मंडल की बहनों द्वारा नुक्कड़ नाटक के जरिए भी प्रभावित गांवों में जागरुकता अभियान चलाया जाएगा एवं डायन कुप्रथा पीड़ितों को सुरक्षा और काउन्सेलिंग की व्यवस्था भी गरिमा परियोजना के जरिए की जाएगी। उन्होने कहा कि डायन कुप्रथा की पीडित महिलाओं को पुनर्वास पर भी काम किया जाएगा और सशक्त आजीविका से जोड़ा जाएगा। रंजन ने कहा कि इस कार्यशाला मे मिले सुझावों पर रणनीति तैयार कर डायन कुप्रथा मुक्त पंचायत का निर्माण किया जाएगा। 

    डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव: डॉ. सुनीता रॉय 

    शिक्षाविद् और यूजीसी वूमेन्स सेंटर की प्रमुख डॉ. सुनीता रॉय ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि समाज को शिक्षित करने से ही डायन कुप्रथा का उन्मूलन संभव है। उन्होंने अपील की कि डायन प्रथा की पीडित महिलाओं को प्रशिक्षित करके ही सशक्त आजीविका से जोड़ा जा सकता है। कल के सुंदर विकसित समाज के निर्माण के लिए डायन कुप्रथा का उन्मुलन जरुरी है। ग्रामीण इलाके से ओझा गुणी प्रथा को खत्म करने के लिए शिक्षा के अलख जगाने की जरुरत है। इस हेतु ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को जागरुक करना अत्यंत आवश्यक है।  उन्होंने समाज में लैंगिंक समानता एवं महिला सशक्तिकरण के लिए कार्य करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि किन्नरों को भी विभिन्न जागरुकता अभियान में जोड़ने की जरुरत है ताकि उनके आजीविका की भी व्यवस्था हो। 

    वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की जरुरत 

    कार्यशाला के तकनीकी सेशन में झालसा के संतोष कुमार ने बताया कि झालसा राज्य में डायन कुप्रथा पीड़ितों को कानूनी मदद करने के लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि हमें वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की जरुरत है, जल्द ही झालसा के द्वारा स्कूलों में लीगल साक्षरता क्लब का गठन किया जा रहा है जो डायन कुप्रथा उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडी एंड रिसर्च इन लॉ के वाइस चांसेलर डॉ केशव राव ने बच्चों को डायन कुप्रथा के बारे में जागरुक करने की जरुरत पर बल दिया। उन्होने कहा कि इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए सबको मिलकर साझा प्रयास करने की जरुरत है। सेंटर फॉर लीगल एड प्रोग्राम के तहत डायन कुप्रथा के पीडितों को लगातार मदद उपलब्ध कराई जाती है। 

    दिन-रात शुरु है हेल्पलाइन

    सीआईपी के निदेशक डॉ बासुदेब प्रसाद ने कहा कि गरिमा परियोजना के अंतर्गत सीआईपी मानसिक स्वास्थय एवं मनोचिकित्सिय सहयोग के लिए कार्य करेगा। मानसिक स्वास्थ्य जागरुकता के लिए भी जेएसएलपीएस के साथ मिलकर कार्य करने की जरुरत है। पीड़ित महिलाओं को एक नया जीवन देने में मानसिक स्वास्थ्य की पहल की जाएगी। उन्होने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य काउन्सेलिंग के लिए साआईपी के 15 हेल्पलाइन नंबर दिन-रात कार्य़ कर रहे है। राष्ट्रीय स्तर की वक्ता गोविंद केलकर ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए डायन कुप्रथा के अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य को सामने रखा। अफ्रीका, यूरोप घाना समेत कई देशो का जिक्र करते हुए डॉ. केलकर ने डायन कुप्रथा के कारण, निदान एवं उन्मूलन पर अपनी बातें रखी। कार्यशाला के समापन समारोह में सीईओ जेएसएलपीए नैन्सी सहाय ने कहा कि यह कार्यशाला गरिमा परियोजना के क्रियान्वयन एवं राज्य से डायन कुप्रथा के उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सखी मंडल की बहनों के जरिए गांव –गांव तक जागरुकता का कार्य किया जाएगा एवं सभी स्टेकहोल्डर्स की साझा रणनीति पर कार्य करने का प्रयास रहेगा। इस अवसर पर तकनीकी चर्चा को डॉ राकेश रंजन, रेशमा सिंह, मनीषा किरण ने भी संबोधित किया।