-सीमा कुमारी
‘मकर संक्रांति’ (Makar Sankranti) हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में से एक त्योहार है। ज्योतिष-शास्त्र के मुताबिक, सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है, तो इस घटना को ही ‘मकर संक्रांति’ कहते हैं। सूर्य की गति नियमित होती है जिस कारण मकर संक्राति हर साल 14 जनवरी के दिन मनाई जाती है। अतः इस साल भी मकर संक्रांति का पावन पर्व 14 जनवरी, दिन शुक्रवार को है।
‘मकर संक्रांति’ का दिन बहुत शुभ और विशेष माना जाता है। इस दिन पूरे भारत देश में कोई न कोई त्योहार अवश्य मनाया जाता है। उत्तर भारत में जहां इस दिन खिचड़ी या उत्तरायण के नाम से मनाया जाता है। तो वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल और असम में बिहू के नाम के त्योहार मनाने की विशेष परंपरा भी है।
शुभ मुहूर्त
14 जनवरी को सूर्यदेव मकर राशि में दोपहर 2 बजकर 43 मिनट पर प्रवेश करेंगे। मकर संक्रांति का पुण्य काल 3 घंटा 02 मिनट का है। जो दोपहर 2 बजकर 43 मिनट से शुरू होकर शाम 5 बजकर 45 मिनट तक है। मकर संक्रांति का महापुण्य काल 01 घंटा 45 मिनट का है जो दोपहर 2 बजकर 43 मिनट से शाम 4 बजकर 28 मिनट तक है।
ऐसा कहा जाता है कि, ‘मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान करने से घर में सुख और शांति आती है। इस दिन गुड़ और तिल दान करने से भी कुंडली में सूर्य और शनि की स्थिति से शांति मिलती है। शनि की साढ़े साती से प्रभावित लोगों को इस दिन तांबे के बर्तन में काले तिल को भरकर किसी गरीब को दान करना चाहिए। मकर संक्रांति के दिन नमक का दान करने से भी शुभ लाभ होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन का गाय के दूध से बने घी का दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मकर संक्रांति के दिन अनाज दान करने से मां अन्नपूर्णा प्रसन्न रहती हैं।
महत्व
आचार्य इंदु प्रकाश के मुताबिक, ‘मकर संक्रांति’ को लेकर कहा जाता है कि, इस दिन गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसलिए इस दिन दान, जप-तप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन को दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है। इस दिन व्यक्ति को किसी गृहस्थ ब्राह्मण को भोजन या भोजन सामग्रियों से युक्त तीन पात्र देने चाहिए।
इसके साथ ही संभव हो तो यम, रुद्र और धर्म के नाम पर गाय का दान करना चाहिए। यदि किसी के बस में ये सब दान करना नहीं है, तो वह केवल फल का दान करें, लेकिन कुछ न कुछ दान जरूर करें। साथ ही मत्स्य पुराण के 98वें अध्याय के 17 वें भाग से लिया गया यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
‘यथा भेदं न पश्यामि शिवविष्णवर्कपद्मजान्।
तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकरः शंकरः सदा।।‘
इसका अर्थ है- मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता। वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला हो