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    नागपुर. शिर्डी और शेगांव जैसे धार्मिक स्थलों की तर्ज पर उपराजधानी स्थित दीक्षाभूमि का विकास करने के लिए प्लान तैयार करने और उसके लिए पर्याप्त निधि का प्रावधान कर समयबद्ध तरीके से विकास करने की मांग को लेकर अधि. शैलेश नारनवरे की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई. इस पर बुधवार को सुनवाई के दौरान प्रन्यास की ओर से बताया गया कि दीक्षाभूमि के विकास की योजना तैयार करने के लिए हाई-पावर कमेटी का गठन किया गया है.

    दीक्षाभूमि पर होनेवाले विभिन्न विकास और योजना का क्रियान्वयन इसी कमेटी के माध्यम से होगा. उल्लेखनीय है कि दीक्षाभूमि के विकास के लिए 100 करोड़ रु. पहले ही मंजूर कर दिए गए थे. यहां तक कि प्रन्यास को 40 करोड़ का आवंटन भी किया गया था जिसके अनुसार विकासकार्यों की शुरुआत की गई. याचिकाकर्ता की ओर से स्वयं अधि. नारनवरे और राज्य सरकार की ओर से अति. सरकारी वकील आनंद फुलझेले ने पैरवी की.

    बैठक की विस्तृत जानकारी दें

    बुधवार को सुनवाई के दौरान प्रन्यास की ओर से बताया गया कि हाल ही में कमेटी की बैठक हुई है. बैठक में हुई चर्चा तथा लिए गए निर्णय की विस्तृत जानकारी देने के लिए कुछ समय देने का अनुरोध अदालत से किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने प्रन्यास को 3 सप्ताह का समय प्रदान किया.

    याचिका में बताया कि शेगांव, शिर्डी, कुंभ मेले के लिए नाशिक शहर, त्र्यंबकेश्वर और पंढरपुर सहित नागपुर जिले के कोराडी स्थित महालक्ष्मी देवस्थान के लिए राज्य सरकार की ओर से विस्तृत प्लान तैयार किया गया. उपराजधानी स्थित दीक्षाभूमि भी विश्व स्तर का धार्मिक स्थल है. जहां हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. दीक्षाभूमि को सामाजिक, धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्व है लेकिन अब तक यहां आनेवाले लोगों को स्थायी सुविधाएं नहीं मिल पाती है. 

    ट्रस्ट करें पहल तो विकास को गति

    सरकारी पक्ष का मानना था कि यदि दीक्षाभूमि ट्रस्ट भी पहल करती है तो मामले में गति आ सकती है. सुनवाई के बाद अदालत ने 20 मार्च 2019 को दिए गए आदेशों के अनुसार विकास को लेकर वित्त विभाग, नगर विकास विभाग, वित्त विभाग, सामाजिक न्याय विभाग और एनएमआरडीए को भी जवाब दायर करने के आदेश दिए थे.

    याचिकाकर्ता ने याचिका में बताया कि हर वर्ष विशेष रूप से धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. दिन-ब-दिन संख्या बढ़ती जा रही है लेकिन लोगों के लिए स्वच्छतागृह, भोजनालय, पार्किंग आदि की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है जिससे हर वर्ष स्थानीय इकाइयों को भीड़ को नियंत्रित करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है.