राजभवन के घेराव के साथ महाराष्ट्र में कांग्रेसी किसान अभियान समाप्त

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आंदोलन इस तरह होना चाहिए कि उसका कोई नतीजा निकले लेकिन कुछ आंदोलन प्रतीकात्मक या रस्म अदायगी टाइप के होते हैं जिन्हें कर्मकांड के समान निपटा लिया जाता है. पार्टी की सक्रियता दिखाने के लिए आंदोलन- प्रदर्शन करते रहना भी जरूरी है. दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) व महासचिव प्रियंका गांधी ने किसानों  (Farmer Agitation) के समर्थन में प्रदर्शन किया तो महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में भी कांग्रेस ने राजभवन पर मोर्चा निकाला. जिसमें हजारों कार्यकर्ता शामिल थे.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहब थोरोत (Balasaheb Thorat) के नेतृत्व में कृषि कानूनों के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों व गैस के बढ़ते दाम के खिलाफ भी प्रदर्शन किया गया. थोरात ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुये कहा कि देश का किसान दिल्ली बार्डर पर महीनों से आंदोलन कर रहा है लेकिन प्रधनामंत्री (Narendra modi) को इस बारे में कुछ भी नहीं लगता. अपने छोटे बच्चों के साथ कडाके की ठंड में पिछले 52 दिनों से आंदोलन करना कोई आसान बात नहीं है. थोरात ने आरोप लगाया कि देश के प्रधानमंत्री उद्योगपतियों के गुलाम बन चुके हैं और देश के किसाों को गुलाम बनाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन कांग्रेस ऐसा होने नहीं देगी. किसानों के हक के लिए लड़ना हमारा उद्देश्य है. नए कृषि कानूनों की चपट में किसानों की जमीन जानेवाली हैं. बड़े-बड़े उद्योगपति किसानों से कौड़ियों के भाव पर माल खरीदेंगे और उसको स्टोर करेंगे. फिर इससे वे करोड़ों रुपये कमाएंगे. इससे आम गरीब किसानों को क्या लाभ मिलेगा?

कांग्रेस कर भी क्या सकती है

कांग्रेस में यह ताकत नहीं है कि केन्द्र सरकार का कुछ बिगाड़ सके. संसद में मोदी सरकार व बीजेपी का वर्चस्व है. 2024 के आम चुनाव तक कांग्रेस कोइसी हालत में रहना है. इस दौरान सरकार विपक्ष को दरकिनार रखकर कोई भी कानून बना सकती है. अपने 3 कृषि कानूनों से उसने यह सिद्घ कर दिखाय कि न तो विपक्ष से चर्चा की जररत है और न कानून का मसौदा चयन समिति के पास भेजना जरूरी है. मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस की बात करनेवाली केन्द्र सरकार की कार्यप्रणाली में सरकार की हर क्षेत्र में अधिकतम और एकांगी भूमिका बनी हुई है. उसे विपक्ष की कोई परवाह नहीं है और वह मनचाहा कानून बना सकती है.

आलोचना बर्दाश्त नहीं

संसदीय प्रणाली के सिद्घांत सिर्फ किताबों के पन्नों तक सीमित रह गए हैं. सरकार से असहमति और विरोध जतानेवाले को देशद्रोही, नक्सलवादी, खालिस्तानी और विदेशी पैसों पर पलनेवाला करार दिया जाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी मोदी सरकार को सूटबूट की सरकार कहें अथवा उस पर उद्योगपतियों से मिलीभगत का आरोप लगाएं कुछ होनेवाला नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी जो ठान लेते हैं, वह किए बिना मानते नहीं हैं. वे आंदोलनकिारयों से सीधे मुाातिब नहीं होते. कोई प्रेस कांफ्रेंस भी नहीं लेते. आंदोलनकारियों से बातचीत का जिम्मा उन्होंने अपने मंत्रियों को सौंप राा है. चूंकि पंजाब और हरियाणा के किसान मजबूत मनोबल राते हैं इसलिये आंदोलन में टिके है. कृषि मंत्री तोमर ने 9वीं बार किसानों से बात की लेकिन किसान टस से मस नहीं हुये. कृषि मंत्री का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के क्रियान्वयन को रोक दिया है इसलिये िाद नहीं होनी चाहिए. किसान एक-एक नतीजे पर चर्चा करें और कानूनों के रद्द करने की बात छोड़ कर अन्य विकल्पों को सरकार के सामने रखें. किसान इसके लिए राजी नहीं है. वे इन कानूनों की वापसी पर अडे हुये हैं.