
मुंबई. ब्रिटेन की ब्रोकरेज कंपनी बार्कलेज (brokerage company barclays) ने मंगलवार को कहा है कि रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति (Reserve Bank Inflation) में तेजी और इसके संतोषजनक स्तर से ऊपर जाने तथा आर्थिक वृद्धि में नरमी के बीच ‘बंधा’ हुआ है। ऐसे में अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही तक रेपो दर में वृद्धि की संभावना नहीं दिखती। बार्कलेज के भारत में मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बजोरिया ने एक रिपोर्ट में कहा कि ऐसी स्थिति में केंद्रीय बैंक अगले वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में ही रेपो दर में वृद्धि कर सकता है और संभवत: इस बीच उदार रुख को बनाये रखेगा।
आरबीआई ने शुरू में महामारी के प्रभाव से अर्थव्यवस्था को संबल देने को लेकर नीतिगत दर में बड़ी कटौती की। उसके बाद शीर्ष बैंक ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये स्वयं को गैर-परंपरागत मौद्रिक साधानों तक सीमित रखा। हालांकि बाद में मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई और मई में मुख्य मुद्रास्फीति 6.3 प्रतिशत तक पहुंच गयी। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर केंद्रीय बैंक कबतक महंगाई दर की उच्च सीमा को बर्दाश्त करेगा।
बजोरिया ने कहा, “एक तरफ आर्थिक वृद्धि दर की कमजोर संभावना और दूसरी तरफ मुद्रास्फीति में वृद्धि के बीच आरबीआई बंधा हुआ लग रहा है। इस स्थिति को देखते हुए, हमारा मानना है कि केंद्रीय बैंक उदार रुख बनाये रखेगा और कीमत वृद्धि पर अंकुश के लिये सरकार के आपूर्ति पक्ष में सुधार से जुड़े उपायों पर भरोसा करेगा। साथ ही वह मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति को काबू में रखने के लिये अपनी प्रतिबद्धता दिखाएगा।”
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति के सामान्य स्तर पर आना सतत रूप से वृद्धि में सुधार पर निर्भर करेगा और यह स्थिति चालू वित्त वर्ष में देखने को संभवत: नहीं मिले। ब्रोकरेज कंपनी ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 में मुद्रास्फीति 5.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है जो पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले अधिक है। और कीमत वृद्धि की मौजूदा स्थिति के लिये वैश्विक स्तर पर जिंसों के दाम में तेजी को जिम्मेदार ठहराया है। (एजेंसी)