Uddhav Thackeray
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    यह तो होना ही था! महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने राज्य में लॉकडाउन को ‘ब्रेक द चेन’  (Break The Chain) अभियान के नाम से लागू कर दिया. दलील यह है कि कोरोना संक्रमण (Coronavirus Chain)की श्रृंखला टूट जाए, इसलिए सारे पहलुओं पर विचार करते हुए यह कदम उठाया गया. आखिर सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची कि रोजगार से ज्यादा जरूरी लोगों की जान है, जिसे बचाने के लिए कड़े प्रतिबंध लगाने ही होंगे. इसमें कोई शक नहीं कि इस तरह की नौबत आने के पीछे प्रशासन की ढिलाई और जनता की बेफिक्री व लापरवाही जिम्मेदार है. इस आपदा के गंभीर होने के लिए जनता भी कम जिम्मेदार नहीं है.

    बाजार व सड़कों पर भारी भीड़ करने, मास्क न लगाने और सुरक्षित दूरी नहीं बरतने का नतीजा है कि महामारी इतनी उग्र हो गई. कुछ लोग तो एक टीका लगाकर बेफिक्र हो गए. होटल-रेस्टॉरेंट में भीड़ लगी. लोगों का रवैया ऐसा था मानो कोरोना खत्म हो गया. जो भी प्रशासक सख्ती से पाबंदियां लगाता है, उसका सभी स्तरों पर विरोध होने लगता है. विपक्षी पार्टियां, व्यापारी वर्ग तथा कई संगठन नाराजगी जताने लगते हैं. ऐसे में कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी का तबादला कर दिया जाता है. यदि सरकार व नेता लोकप्रियता की चिंता करेंगे तो कड़े प्रतिबंध लागू नहीं कर पाएंगे.

    ऑपरेशन करने वाले सर्जन को भी तो सख्त होना पड़ता है, तभी मरीज ठीक होता है. पिछले कुछ दिनों से यही आसार बन गए थे कि अब लॉकडाउन लगाना अपरिहार्य है. कोरोना संक्रमण (Coronavirus) और मौत के बढ़ते मामलों से स्थिति गंभीर व चिंताजनक हो गई है. रास्ता यही निकाला गया कि इसे ‘ब्रेक द चेन’ कहा जाए और गरीबों व श्रमिक वर्ग को आर्थिक राहत दी जाए, जिन पर लॉकडाउन का सर्वाधिक विपरीत असर पड़ता है. इसलिए गरीबों,  कांस्ट्रक्शन में लगे श्रमिकों व रिक्शेवालों को प्रतिमाह 1,500 रुपए की मदद, आदिवासियों को 2000 रु. प्रति माह की सहायता, 7 करोड़ गरीब लोगों को प्रति व्यक्ति 3 किलो गेहूं व 2 किलो चावल की मदद दी जाएगी. 5,500 करोड़ का कोरोना बजट सरकार ने तय किया.