पहले ही केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के मुख्यमंत्री (Arvind kejriwal) व उनकी सरकार के अधिकार अत्यंत सीमित थे और अब तो केंद्र सरकार ने दिल्ली पर उपराज्यपाल (एलजी) (Delhi (Amendment) Bill 2021) के शासन संबंधी विधेयक संसद में पारित कर केजरीवाल सरकार को अधिकार शून्य ही बना दिया. राज्यसभा में विपक्ष की अभूतपूर्व एकता और भारी विरोध व हंगामे के बावजूद यह बिल पारित हो गया. कांग्रेस, शिवसेना, राकां, आप, द्रमुक-सीपीएम, राजद, टीएमसी, टीडीपी व अकाली दल जैसी सभी पार्टियों ने इसे दिल्ली के लिए ‘काला दिन’ बताते हुए बिल का विरोध किया.
विपक्ष का आरोप है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाली बीजेपी अब एलजी के जरिए दिल्ली में राज करना चाहती है. ‘आप’ के नेता संजय सिंह ने कहा कि 90 प्रतिशत सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी सरकार का गला घोटा जा रहा है. यदि दिल्ली में एलजी (L-G) ही सर्वेसर्वा रहेंगे तो फिर वहां सरकार की जरूरत ही क्या है. जब वहां की विधानसभा और मुख्यमंत्री पावरलेस होकर रह जाएंगे तो उनका होना या नहीं होना बराबर है. पहले भी अपने लिए अधिकारों की मांग को लेकर मुख्यमंत्री केजरीवाल धरना आंदोलन करते रहे हैं. उनका पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग से लगातार टकराव चला.
बाद में अनिल बैजल को एलजी बनाया गया. केजरीवाल के हाथों में न तो दिल्ली पुलिस है, न न्यायिक अधिकारी व आईएएस अफसर उनकी सुनते हैं. सारे अधिकार एलजी के हाथों में केंद्रित हैं. बिजली बिल माफ करने, मोहल्ला क्लीनिक खोलने, सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने जैसे कदमों से केजरीवाल की लोकप्रियता बढ़ी जिसे बीजेपी बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं. इसीलिए उन्हें अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने इस विधेयक को संघीय ढांचे के खिलाफ बताया. केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी ने दिल्ली के लोगों को धोखा दिया है. यह बिल उन लोगों की ताकत छीन लेगा जिन्हें जनता ने चुना है.