Dhaan, Paddy Bags
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    तिरोड़ा. सरकारी आधारभूत धान खरीदी केंद्रों पर निजी व सेवा सहकारी संस्थाओं की मध्यस्थता में खरीफ की धान 1868 रु. प्रति क्विंटल की दर से सरकार ने खरीदा. खरीदी केंद्र प्रारंभ होने के पहले ही 700 रु. प्रति क्विंटल पर बोनस देने की घोषणा सरकार में शामिल जनप्रतिनिधियों द्वारा की गई. खरीदी केंद्र प्रारंभ होने के लगभग 45 दिनों बाद बोनस को मंत्रिमंडल में मंजूरी दी गई.

    1868  रु. प्रति क्किंटल  भाव केंद्र सरकार द्वारा घोषित

    केंद्र सरकार द्वारा अनाजों के भाव फसल निकलने के 3 माह पूर्व ही घोषित किए जाते है. जिसमें खेती से उत्पन्न होने वाले सभी अनाजों की किस्त शामिल न रहकर जैसे धान, गेंहु, चना, तुअर, मक्का, गन्ना, सोयाबीन, कपास आदि फसलों के भाव घोषित करती है जो संपूर्ण भारत के किसानों को लागू होकर उन्हें यह भाव मिलता है यही आधारभूत कींमत कहलाई जाती है इसे ही एमएसपी कहा जाता है. इस एमएसपी से कम दर में माल खरीदने पर सरकार द्वारा मनाई रहती है. इसके विपरित कृषि उपज मंडियों में कम दर में धान खरीदी की जाती है.

    700 रु. बोनस राज्य सरकार द्वारा घोषित

    महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र द्वारा घोषित रेट किसानों के धान के लागत मुल्य से कम होने से किसानों की माली हालत के मद्देनजर रखते हुए मदद के रुप में 700 रु. प्रति क्विंटल बोनस घोषित कर 50 क्विंटल तक की मर्यादा रखी है. टोटल 2568 रु. प्रति क्विंटल भाव की लालच में किसानों ने उत्पादित संपूर्ण धान आधारभूत धान खरीदी केंद्र पर ही बेचा. 

    कृषि उपज मंडियों पर न्यूनतम धान बिक्री

    कृषि उपज मंडियों में ज्यादा से ज्यादा 1600 रु. प्रति क्विंटल भाव तक धान बिक्री हुआ. जिससे किसान को मूल कींमत के 268 रु. व बोनस के 700 रु. ऐसे 968 रु. प्रति क्विंटल कम मिलते रहे. इस अंतर को देखते हुए किसानों ने अपनी फसल आधारभूत धान खरीदी पर ही बेचना उचित समझा. कृषि उपज मंडियों में एमएसपी से कम दर में धान बिक्री होती है जबकि यह कानून अपराध है लेकिन संबंधित विभाग किसी भी प्रकार की कार्रवाई न करते हुए इस ओर अनदेखी करता है. 

    धान की ज्यादा आवक से मूल कींमत व बोनस अटका

    धान की आवक ज्यादा होने से जिले के किसानों के करोड़ों रु. सरकार पर पड़े है. बोनस का तो अता पता ही नहीं है.  बैंकों से लिए फसल कर्ज की अदायगी में भी मुश्किलें आ रही है.  

    खरीदी से ही गोदाम हाउसफूल

    इस वर्ष तहसील में जीतने भी गोदाम थे वे सभी खरीफ मौसम में खरीदे गए धान फसल से फूल हो गए है. अनेक राईस मील व बड़े मकानों में भी धान रखा गया है. कुछ मुर्गी पालन केंद्र को भी खाली कराकर उनमें भी खरीफ फसल को खरीदा गया धान रखा गया है. इस पर भी जगह कम पडऩे पर जमीन पर नीचे ताड़पत्री बिछाकर उस पर धान के बोरे रखकर उन्हें प्लास्टिक से ढका गया है. 

    राइस मील मालिकों की सरकार के साथ बैठक

    सरकार ने गोदाम में रखे धान उठाकर राइस मील मालिकों को पिसाई करने का आदेश दिया लेकिन चावल का उतारा ज्यादा प्रमाण में होना चाहिए इस शर्त को राइस मील मालक तैयार नहीं रहने से वे माल नहीं उठा रहे है. जिसके मद्देनजर राज्य शासन ने नागपुर, मुंबई में राइस मील मालिकों के साथ बैठक की लेकिन नतीजा शुन्य रहा और आगे कोई हलचल नहीं दिख रही है. 1 मई से नया रबी का धान तैयार होकर बिक्री के लिए बाजार में आ जाएगा. वहीं दूसरी ओर खरीदी केंद्रों के पास रबी फसल का धान संग्रहित करने के लिए गोदाम खाली नहीं है. 

    सरकार को ही पैसों की तंगी रहने से मूल कींमत व बोनस की राशि का करोड़ों रु. किसानों का सरकार पर है और आगे यदि रबी फसल की खरीददारी की जाती है तो इसकी अदायगी सरकार किसानों को कैसे करेगी. इसका रास्ता निकालने के लिए सरकार कहीं ऐसा तो नही कर रही है की राइस मील मालिकों पर चावल का उतारा ज्यादा देने की शर्त डाल दी जो उन्हें मान्य नहीं होगी. वे अड़े रहेंगे तब हम मीटिंग लेंगे जिसमें भी निर्णय निकलेगा नहीं और समस्या जस की तस बनी रहेगी. किसानों की सरकार से मांग है कि यह लूकाछिपी का खेल बंद कर 1 मई से रबी धान फसल खरीदी की व्यवस्था करें.