Supreme Court

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नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा कि लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी लेते वक्त इच्छुक लोगों को बिमारी से जुडी पूरी सही जानकारी देना आवश्यक है। ऐसा न करने पर इंश्योरेंस कंपनी पॉलिसीधारक का दावा खारिज कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के इस साल मार्च के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह टिप्पणी की है।

एक इंश्योरेंस कंपनी ने मृतक की माता को ब्याज के साथ दावे की पूरी राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ आयोग में याचिका दायर की थी, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया था। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि प्रस्ताव के फॉर्म में पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि इंश्योरेंस करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके। इस पीठ में न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी शामिल रहीं।

पीठ ने कहा, “इंश्योरेंस का अनुबंध अत्यधिक भरोसे पर आधारित होता है। यह बीमा लेने के इच्छुक हर व्यक्ति का दायित्व हो जाता है कि वह संबंधित मुद्दे को प्रभावित करने वाली सारी जानकारियों का खुलासा करे, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर किसी विवेकपूर्ण निर्णय पर पहुंच सके।”

इंश्योरेंस कंपनी ने आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। राष्ट्रीय आयोग ने संबंधित मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि इंश्योरेंस लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारियों का खुलासा नहीं किया था। उसने यह भी नहीं बताया था कि इंश्योरेंस लेने के महज एक महीने पहले उसे खून की उल्टियां हुई थीं।

पीठ ने कहा, “इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा की गयी जांच में पता चला है कि इंश्योरेंस धारक पुरानी बीमारियों से जूझ रहा था, जो लंबे समय तक शराब का सेवन करने के कारण उसे हुई थीं। उसने उन तथ्यों की भी जानकारी इंश्योरेंस कंपनी को नहीं दी थी, जिनके बारे में वह अच्छे से अवगत था।” (एजेंसी)