BSP in Loksabha
मायावती (डिजाइन फोटो)

Loading

नई दिल्ली : एक राष्ट्रीय दल होने के बावजूद बहुजन समाज पार्टी (BSP) का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश के अलावा बहुजन समाज पार्टी का सांसद किसी और राज्य में जीत ही नहीं पा रहा है। बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में 26 राज्यों में अपनी भागीदारी की थी लेकिन 13 से अधिक राज्यों में एक प्रतिशत वोट भी नहीं मिल पाया।

बसपा के वोट बैंक को देखा जाए तो 26 राज्यों में से 7 राज्यों में 2 प्रतिशत से कम वोट मिले, जबकि पांच राज्यों में तीन से पांच फ़ीसदी वोट ही मिल पाया। बहुजन समाज पार्टी को सबसे अधिक वोट उत्तर प्रदेश में मिले, जहां पर 19.26 प्रतिशत मतदाताओं ने हाथी का बटन दबाकर पार्टी के 10 सांसदों को संसद में भेज दिया था, लेकिन अब की बार एक बार फिर चुनावी माहौल बहुजन समाज पार्टी से पक्ष में नहीं दिखाई दे रहा है।

आपको बता दें कि बहुजन समाज पार्टी ने 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य राज्यों में छोटे दलों से ताजमहल करने के ऑप्शन खुले हैं। बसपा ने सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे और पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद को चुनाव अभियान की कमान सौंप रखी है।

लगभग 4 दशकों से भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय दल के रूप में अपना अस्तित्व बनाए रखने वाली बहुजन समाज पार्टी अब दूसरे राज्यों में खाता खोलने का प्लान बना रही है। पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद नए सिरे से रणनीति बनाकर अन्य राज्यों में नए सहयोगी पार्टियों की तलाश कर रहे हैं, ताकि दलित वोटरों में हाथी की पकड़ को मजबूत किया जा सके और उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों से भी बहुजन समाज पार्टी का सांसद लोकसभा में भेजा जा सके।

BSP chief Mayawati
मायावती (फाइल फोटो)

चार राज्यों से ही जीत सके हैं सांसद

आपको याद होगा कि वर्ष 1984 में बनी बहुजन समाज पार्टी अब तक केवल चार राज्यों से ही सांसद देने के मौके मिले हैं। जिसमें सर्वाधिक सांसद उत्तर प्रदेश से लोकसभा में गए हैं। इसके अलावा पंजाब, हरियाणा व मध्य प्रदेश से एक-एक सांसद जीतने में सफल रहे हैं।

1989 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 3 लोकसभा सीटों के अलावा पंजाब में एक सीट से जीत हासिल की थी, जहां पर पार्टी के संस्थापक रहे कांशीराम विजयी हुए थे। इसके अलावा 1991 के लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश और 1998 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में भी पार्टी का खाता खुला था। इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों में कौन कहे इन राज्यों में भी जीत नसीब नहीं हुयी।

बसपा का लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड देखा जाए तो 2007 में उत्तर प्रदेश में जब बहुजन समाज पार्टी ने अपने दम पर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी, केवल उसी साल उत्तर प्रदेश से 20 और मध्य प्रदेश से 1 सांसद चुनकर लोकसभा में भेजने में सफल रही थी। यही उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इस साल बहुजन समाज पार्टी को सर्वाधिक 6.5% वोट भी मिले थे, लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं।

 

ऐसे बढ़ता-गिरता रहा ग्राफ

1989 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने चार सीटें जीती थीं और उसे कुल 2.07 प्रतिशत वोट मिला था। वहीं 1991 के चुनाव में 3 सीटों को जीतने के बाद केवल 1.61 प्रतिशत ही वोट मिल पाया था। अगर 1996 की बात करें तो इस साल में बहुजन समाज पार्टी ने पहले की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन किया और 4.02% को हासिल करके लोकसभा में 11 सांसद भेजने में सफल रही। इसके बाद 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक जरूर बढ़ा और उसका मत प्रतिशत बढ़कर 4.67% हो गया, लेकिन सीटों की संख्या आधी से भी कम हो गयीं। इस चुनाव में केवल 5 सीट ही बहुजन समाज पार्टी जीत सकी।

1999 में हुए लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 4.5 फीसदी वोट मिले लेकिन एक बार फिर सीटों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई और 14 सांसद लोकसभा में पहुंचे। 2004 में हुए लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को पहली बार 5% से अधिक वोट हासिल हुए और पार्टी को 19 सीटें हासिल हुयीं। इसके बाद 2009 में हुए लोकसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश की सत्ता का सहारा मिला और मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने सर्वाधिक 6.5% वोट हासिल करके एक कीर्तिमान बनाया और लोकसभा में 21 संसद पहुंच गए, जिसमें से 20 सीटें उत्तर प्रदेश से और एक सीट मध्य प्रदेश से हासिल हुई थी।

2009 के चुनाव के बाद बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ गिरने लगा। उत्तर प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद 2014 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तो बहुजन समाज पार्टी को केवल 4.19% वोट मिले और लोकसभा में पार्टी का खाता भी नहीं खुला और सांसदों की संख्या शून्य हो गई। लेकिन 2019 में जो बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ा तो एक बार फिर उसे 10 सांसदों को जिताने में सफलता मिली, लेकिन उसका वोट प्रतिशत घटकर 3.6% रह गया। 2019 में बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी से गठबंधन के चलते सीटें तो मिल गयीं, लेकिन को प्रतिशत का घाटा हुआ। इसीलिए बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो अक्सर कहा करती थीं कि समाजवादी पार्टी के वोट बहुजन समाज पार्टी के नेताओं को नहीं मिले। उसी के चलते पार्टी को नुकसान हुआ। 

भरोसेमंद नेताओं की कमी

आपको याद होगा कि वर्तमान दौर में बहुजन समाज पार्टी जिस तरह से गुजर रही है, उससे यह लगने लगा है कि पार्टी में जमीनी और भरोसेमंद नेताओं की कमी है। पार्टी के तमाम दिग्गज नेता पार्टी को छोड़कर दूसरे दलों में चले गए हैं। मायावती ने दूसरे राज्यों में पार्टी की सेहत सुधारने के लिए अपने विश्वासपात्रों को कमान सौंपी, लेकिन वे लोग कोई दम नहीं दिखा पाए। इसीलिए लगभग तीन माह पहले मायावती ने अपने युवा भतीजे आकाश को पार्टी का उत्तराखंड अधिकारी घोषित करने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य राज्यों में बहुजन समाज पार्टी की पताका फहराने की जिम्मेदारी सौंपी है। 

अब कहा जा रहा है कि पार्टी के युवा उत्तराधिकारी आकाश के सामने देश के 24 राज्यों में पार्टी का जनाधार बढ़ाने और उसका प्रदर्शन सुधारने की बड़ी जिम्मेदारी है। अब देखना यह है कि किस तरह से वह अंबेडकर और कांशीराम के अनुयायियों को एकजुट करते हुए मायावती के साथ रखने में कामयाब होते हैं और नीले झंडे पर सवार हाथी को मजबूत करते हुए अबकी बार लोकसभा में कितने सांसद भेज पाते हैं।