Department of Telecom will withdraw 96% of the demand of Rs 4 lakh crore from PSUs

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नई दिल्ली. केन्द्र ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि दूरसंचार विभाग ने गेल जैसे गैर संचार सार्वजनिक उपक्रमों से एजीआर बकाया के रूप में चार लाख करोड़ रूपए की मांग का 96 फीसदी वापस लेने का निर्णय किया है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ को इस मामले की वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दूरसंचार विभाग ने एक हलफनामा दाखिल किया है जिसमें इन सार्वजनिक उपक्रमों से एजीआर से संबंधित बकाया राशि की मांग करने की वजह के बारे में स्पष्टीकरण दिया गया है।

इस बीच, दूरसंचार विभाग ने पीठ से अनुरोध किया कि उसे भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया लि जैसी निजी क्षेत्र की संचार कंपनियों द्वारा एजीआर पर आधारित बकाया राशि के भुगतान के बारे मे दाखिल हलफनामे का जवाब देने के लिये कुछ समय दिया जाये। पीठ ने इन संचार कंपनियों को अपनी वित्तीय स्थिति का विवरण दाखिल करने का निर्देश देने के साथ ही सारे मामले की सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह के लिये सूचीबद्ध कर दी। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने प्रतिभूति और बैंक गारंटी आदि के बारे में पूछा जो बकाया राशि का भुगतान सुनिश्चित करने के लिये इन कंपनियों से मांगी जा सकती है।

वोडाफोन आइडिया की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह पहले ही दूरसंचार विभाग को 7000 करोड़ रूपए का भुगतान कर चुका है लेकिन इस समय के वित्तीय हालात में वह किसी भी तरह की बैंक गारंटी देने की स्थिति में नहीं है। पीठ ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में दूरसंचार क्षेत्र ही धन अर्जित कर रहा है और उन्हें कुछ न कुछ धन जमा कराना चाहिए क्योंकि सरकार को स्थिति से निबटने के लिये पैसों की जरूरत है। न्यायालय ने 11 जून को इस मामले की सुनवाई के दौरान दूरसंचार विभाग से कहा था कि गेल जैसे गैर दूरसंचार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से चार लाख करोड़ रुपए के भुगतान की मांग पर फिर से विचार किया जाये। पीठ ने कहा था कि दूरसंचार कंपनियों के मामले मे उसके अक्टूबर, 2019 के फैसले के आधार पर इस तरह की मांग करना पूरी तरह अनुचित है।

शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही भारती एयरटेल और वोडाफोन आइडिया लि. सहित दूरसंचार कंपनियों से कहा था कि वे अक्टूबर, 2019 के फैसले के बाद सरकार को देय राशि के भुगतान के लिये जरूरी समय के बारे में स्पष्टीकरण के साथ हलफनामे दाखिल करें। यही नहीं, पीठ ने उस गारंटी के मुद्दे पर भी सरकार से जवाब मांगा था जो भुगतान की समय सीमा सुनिश्चित करने के लिये इन संचार कंपनियों से ली जा सकती है। लाइसेंस शुल्क और स्पेक्ट्रम शुल्क जैसी सरकारी देनदारियों की गणना के लिये समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) पर शीर्ष अदालत के अक्टूबर, 2019 के फैसले के बाद दूरसंचार विभाग ने गैस प्रदाता गेल इंडिया लि, विद्युत पारेषण कंपनी पावरग्रिड, ऑयल इंडिया लि, दिल्ली मेट्रो और अन्य सार्वजनिक उपक्रमों से पिछले बकाये के रूप में चार लाख करोड़ रुपए की मांग की थी। सरकार के स्वामित्व वाले इन उपक्रमों ने दूरसंचार विभाग की इस मांग को चुनौती देते हुये कहा था कि दूरसंचार उनका मुख्य कारोबार नहीं है और लाइसेंस से आमदनी उनकी आय का बहुत ही मामूली हिस्सा है।(एजेंसी)