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नई दिल्ली: जहां एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह (Ram Mandir) में कांग्रेस नेता शामिल नहीं होने का अपना रुख साफ़ कर चुके हैं। वहीं इस बाबत कांग्रेस हाईकमान ने अपना स्टैंड क्लीयर करते हुए कहा कि, हमारे जिन नेताओं को न्योता मिला है, वे नहीं जाएंगे। अन्य कोई नेता भी इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेगा। इसके माने यह हुए की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में अग्रणी सोनिया गांधी (Sonia Gandhi)  भी अयोध्या नहीं पहुचेंगी।  

अब इसे कांग्रेस की बड़ी रणनीति का हिस्सा समझें या कुछ और लेकिन इससे पहले कांग्रेस खुद को राम और राम मंदिर से हमेशा जोड़ती आ रही है। वैसे राम मंदिर (Ram Mandir) मुद्दे पर कांग्रेस शुरू से दुविधा की स्थिति में रही है। कभी मस्जिद का पक्ष लिया, तो कभी मंदिर का समर्थन किया। 

गांधी परिवार ने कभी नहीं किए राम लला के दर्शन  

हालांकि यह भी एक तथ्य है कि सोनिया गांधी के साथ ही उनके बेटे राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने कभी भी राम लला के दर्शन नहीं किए हैं।बात 1992 की करें तो बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद 2016 में अयोध्या जाने वाले राहुल गांधी परिवार के पहले सदस्य थे। लेकिन तब वे केवल हनुमानगढ़ी मंदिर गए, राम मंदिर नहीं गए। वहीं प्रियंका वाड्रा ने 2019 में पहली बार अयोध्या की यात्रा की, लेकिन मंदिर नहीं गईं।

कांग्रेस ने 1991 घोषणा-पत्र में कहा था, मंदिर बनाएंगे

इधर जब 1991 में लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र में मंदिर का उल्लेख किया गया था और कहा गया था कि पार्टी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किए बिना मंदिर के निर्माण के पक्ष में है। इसके ठीक एक साल बाद प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने सार्वजनिक रूप से मस्जिद के निर्माण की भी प्रतिबद्धता जताई थी।

क्या सोनिया कभी गईं है मंदिर

सोनिया गांधी के आलोचक मानते हैं कि,राजनीतिक मजबूरियों की वजह से सोनिया का झुकाव हिंदुत्व की तरफ़ बढ़ा। दरअसल शादी के बाद राजीव गांधी जब भी किसी पूजा-पाठ की जगह पर पहुंचते थे, तो सोनिया उनके साथ रहती थीं। इतना है नहीं उन्होंने सिर पर आंचल रखा यहां तक कि पंडित-पुजारियों के पैर भी उन्होंने छुए। वहीं जब साल 1989 के चुनावों से पहले जब राजीव गांधी देवराहा बाबा से मिले तो वे उनके साथ थीं। तब भी उन्होंने झुककर देवराहा बाबा के पैर भी छुए।

इसके पहले साल 1979 में सोनिया को इंदिरा गांधी अपने साथ गुजरात के अंबाजी मंदिर ले गई थीं। यहांइंदिरा गांधी को आशीर्वाद मिला और वे सत्ता में वापस लौटीं। फिर साल 1998 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की हैसियत से आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में पूजा की थी। 

जब राजीव-सोनिया पशुपतिनाथ मंदिर से बिना पूजा किए ही लौटे 

फिर साल साल 1989 में जब राजीव के काठमांडू दौरे के समय सोनिया उनके साथ थीं। उस वक्त नेपाल दुनिया की एकमात्र हिंदू राजशाही वाला देश माना जाता था, आज भी है। वहीं ऐतिहासिक पशुपतिनाथ मंदिर जाने के राजीव गांधी के फ़ैसले तक राजीव और तत्कालीन रजा बीरेंद्र के बीच सब कुछ ठीक था। लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर में भी ग़ैर-हिंदुओं के जाने पर पाबंदी है।

हालांकि राजीव ने सोनिया को साथ ले जाने पर ज़ोर दिया लेकिन पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी उन्हें कोई छूट देने के लिए तैयार नहीं हुए। इसपर खुद राजा बीरेंद्र ने भी पुजारियों को किसी तरह का आदेश देने में अपनी असमर्थता जाहिर की। हालांकि राजा बीरेंद्र की पत्नी रानी ऐश्वर्या पशुपतिनाथ मंदिर के ट्रस्ट के मामलों में ख़ासा दख़ल रखती थीं। ऐसा माना जाता है कि राजीव ने इस घटना को अपने अनादर के तौर पर लिया था। उन्हें लगा था कि राजा बीरेंद्र ने उन्हें अपने तरीके से नीचा दिखाया था। आखिरकार गुस्से में राजीव पशुपतिनाथ मंदिर से बिना पूजा किए ही लौट गए।

सोनिया और लाल धागा (कलावा)  

हालांकि ये बात और है की सोनिया गांधी आज भी अपने हाथ में एक लाल धागा बांधती हैं जो उन्हें एक हिंदू पुजारी ने दिया था। इसे ‘कलावा’ भी कह सकते हैं। कहा जाता है की सोनिया को अपने इस लाल धागे पर बहुत ज्यादा भरोसा है।  उनका मानना है कि ये धागा उन्हें हर बुरी ताक़त से उनकी हिफाज़त करेगा। बताया जाता है कि, परिवार में जब भी कोई अवसर होता है, सोनिया गांधी बनारस से अपने पारिवारिक पंडित को पूजा के लिए अवश्य बुलाती हैं। वहीं जब प्रियंका गांधी के बेटे रेहान का जन्म हुआ था तो सोनिया ने अपने पंडित को उसके नामकरण संस्कार के लिए भी विशेष रूप से बुलाया था।

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा का न्योता ठुकराना मज़बूरी या राजनीति

खैर राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में सोनिया गांधी को भी शामिल होने का न्योता मिला था। लेकिन चूंकि कांग्रेस के अनुसार यह BJP और RSS का इवेंट है और चुनावी लाभ के लिए अधूरे मंदिर का उद्घाटन हो रहा रहा है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी, मोदी सरकार के इस न्योते को ससम्मान अस्वीकार कर दिया है। फिरमुस्लिम वोट बैंक को भी तो संभालना जरुरी है, आखिर कांग्रेस के पास उत्तर भारत समेत पूरे देश में यह बड़ा मुस्लिम वोट बैंक है। वहीं बीते चुनाव में उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस को 50% से ज्यादा मुस्लिमों ने ही वोट किया था।