mahua-moitra
महुआ मोइत्रा

Loading

नई दिल्ली/अलीगढ़: बीते शुक्रवार से अगर पूरे देश में कोई एक शख्स की सबसे ज्यादा चर्चा है तो वह हैं पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी TMC की निवर्तमान सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra)। आप-हम जैसे आम लोगों के वोट से चुनकर संसद में पहुंची मोइत्रा पर लगे आरोप बेहद गंभीर हैं। दरअसल संसद में सवाल पूछने के लिए एक कारोबारी से रुपये लेने के आरोपों की जांच के बाद संसद की एथिक्स कमेटी की सिफारिश को मानते हुए उनकी संसद सदस्यता तो जरुर छीन ली गई है। लेकिन इस पर पूरा विपक्ष महुआ के साथ खड़ा हो गया है।

देखा जाए तो महुआ की जिंदगी के कई ऐसी दिलचस्प पहलू हैं जिनके बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है।वह पहले एक सफल बैंकर थीं और फिर करोड़ों रुपये सालाना की नौकरी छोड़कर राजनीति में आईं। कुछ समय के लिए संसदीय करियर पर अचानक लगे विराम के बावजूद विपक्ष के अटूट समर्थन ने एक अलग तस्वीर पेश करते हुए वर्तमान भारतीय राजनीति में मोइत्रा का गहरा प्रभाव दिखाया है। 

असम से शुरू हुआ  सफ़र 

असम के कछार जिले में 1974 में जन्मी मोइत्रा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयीं। न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज़ में निवेश बैंकर रहीं मोइत्रा ने राहुल गांधी की ‘‘आम आदमी का सिपाही” पहल से प्रेरित हो कर राजनीति का रुख किया। उन्होंने 2009 में कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल होने के लिए लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग करियर त्याग दिया।

कांग्रेस से TMC के खेमें में 

कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई में तैनात की गयीं मोइत्रा ने पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ निकटता से काम किया। पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार के खिलाफ बदलाव की बयार के बीच मोइत्रा और मुखर्जी 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनाव से महज कुछ दिन पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गई जिसमें ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने जीत हासिल की। 2011 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने के बावजूद मोइत्रा ने धैर्यपूर्वक इंतजार किया और 2016 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने पर करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की। उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया लेकिन उनके ओजस्वी भाषण और वाद-विवाद कौशल ने उन्हें राष्ट्रीय मीडिया में पार्टी की प्रमुख प्रवक्ता बना दिया।

कृष्णानगर लोकसभा सीट से मिला टिकट

मोइत्रा को 2019 में कृष्णानगर लोकसभा सीट से टिकट मिला और वह विजयी हुईं। ज्यादा अनुभव न होने के बावजूद संसद में मोइत्रा के जोशीले भाषणों ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और वह टेलीविजन पर होने वाली बहसों में टीएमसी की तरफ से सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बन गयीं। अपने मन की बात कहने के लिए पहचानी जाने वाली मोइत्रा को अकसर संगठन के मामलों में पार्टी से मतभेदों का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार भी लगायी।

विवाद और महुआ एक दुसरे के पर्याय

पिछले दो साल में विवाद मोइत्रा का पर्याय बन गए जिसमें पत्रकारों को ‘‘दो कौड़ी” का बताने वाली टिप्पणी भी शामिल हैं जिसके कारण स्थानीय बांग्ला मीडिया ने लंबे समय तक उनका बहिष्कार किया था। उन्होंने पिछले साल एक सम्मेलन में देवी काली को मांस खाने वाली और शराब पीने वाली कह कर देशभर में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था। राजद्रोह कानून की मुखर विरोधी मोइत्रा कानूनी लड़ाइयों में भी सक्रियता से शामिल रही हैं। उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की हुई है।

‘कैश फॉर क्वेरी’ के चलते संसद सदस्यता रद्द 

‘कैश फॉर क्वेरी’ के मामले के बीच मोइत्रा ने कहा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार को चुनौती देने की वजह से परेशान किया गया। उन्होंने भारी जनादेश के साथ संसद में लौटने का संकल्प जताया। भले ही इस विवाद से सांसद के रूप में उनका पहला कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया लेकिन टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के अटूट समर्थन के साथ पार्टी के भीतर उनका कद निश्चित रूप से बढ़ा है। विपक्ष भी मोइत्रा के साथ है। भाजपा के खिलाफ हमले बोलने के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का उनके साथ खड़े रहना, भारतीय राजनीति के जटिल क्षेत्र में मोइत्रा के प्रभाव को दर्शाता है।(एजेंसी इनपुट के साथ)