नई दिल्ली, ख़बरों के अनुसार कल सबरीमाला विवाद पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने का अंदेशा है. बीते कुछ दिनों में न्यायलय ने अयोध्या मामले पर भी अपना फैसला दिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली
नई दिल्ली, ख़बरों के अनुसार कल सबरीमाला विवाद पर सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने का अंदेशा है. बीते कुछ दिनों में न्यायलय ने अयोध्या मामले पर भी अपना फैसला दिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच कल सुबह 10.30 बजे फैसला सुनाएगी. ज्ञातव्य हो की CJI रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवा निवृत हो रहे हैं और उसके पहले वे वभिन्न बड़े मामलों का पटाक्षेप करने पर अग्रसर हैं। फिलहाल सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने वाले फैसले को चुनौती देने वाली रिव्यू पेटिशन पर हैं.विदित हो कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर विवाद विगत एक वर्ष से चल रहा है। पिछले साल उच्चतम न्यायलय नें सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने वाले फैसले के बाद इसी समय में केरल में हिंसा भड़क गई थी. जिसके फलस्वरूप इसपर पुनर्विचार याचिका भी दायर की गई थी. आपको बता दें कि सबरीमाला में पुनर्विचार याचिका के कुल 64 मामले थे.
सबरीमाला मंदिर :स्थापना और ऐतिहासिक तथ्य
सबरीमला, केरल के पेरियार टाइगर अभयारण्य में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। यहाँ विश्व का सबसे बड़ा वार्षिक तीर्थयात्रा होती है जिसमें प्रति वर्ष लगभग २ करोड़ लोग श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से १७५ किमी की दूरी पर पंपा है और वहाँ से चार-पांच किमी की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत शृंखलाओं के घने वनों के बीच, समुद्रतल से लगभग १००० मीटर की ऊंचाई पर सबरीमला मंदिर स्थित है।सबरीमला में भगवान अयप्पन का मंदिर है। शबरी पर्वत पर घने वन हैं। इस मंदिर में आने के पहले भक्तों को ४१ दिनों का कठिन व्रत का अनुष्ठान करना पड़ता है जिसे ४१ दिन का ‘मण्डलम्’ कहते हैं। यहाँ वर्ष में तीन बार जाया जा सकता है. यहां ज्यादातर पुरुष भक्त देखें जाते हैं। महिला श्रद्धालु बहुत कम होती हैं। अगर होतीं भी हैं तो बूढ़ी औरतें और छोटी कन्याएँ इसका कारण यह है की श्री अयप्पन ब्रह्माचारी थे। इसलिए यहां पे छोटी कन्याएँ आ सकती हैं, जो रजस्वला न हुई हों या बूढ़ी औरतें, जो इससे मुक्त हो चुकी हैं। जाति-धर्म का बंधन न मानने के बाद भी यह बंधन श्रद्धालुओं को मानना होता है.
क्या था सबरिमामला विवाद
28 सितंबर, 2018 को उच्चतम न्यायलय ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है। यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है और मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है, यह स्वीकार्य नहीं है. इस फैसले के चलते केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गयाथा. भगवान अयप्पा के दर्शन करने जा रही संघ परिवार की नेता की गिरफ्तारी के बाद दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों ने राज्य में बंद रखाथा. स्कूल और शैक्षणिक संस्थान भी बंद रखे गए थे. विश्व हिन्दू परिषद के प्रदेश अध्यक्ष एसजेआर कुमार ने आरोप लगाया था कि हिंदू एक्यावेदी की प्रदेश अध्यक्ष केपी शशिकला को पुलिस ने शुक्रवार रात करीब ढाई बजे गिरफ्तार कर लियाथा क्यूँकि वह पूजन सामग्री लेकर सबरीमाला कि पहाड़ी पर चढ़ रही थीं। उन्होंने आरोप लगाया था कि केरल सरकार सबरीमला मंदिर को नष्ट करने पर तुली है।
सबरीमाला महोत्सव
फिलहाल सबरीमाला में आने वाले 16-17 नवंबर से भगवान् अयप्पा के मंदिर में तीर्थयात्रा महोत्सव शुरू होने वाला है. जिसमें लाखों के संख्या में महिला एवं पुरुष आने वाले हैं. वहवहीं उच्चतम न्यायलय के फैसले के अंदेशे को लेकर चौकसी और एहतियात के लिए केरल सरकार नें कड़े कदम उठाये हैं।खबर है की सुरक्षा के लिए भगवान अयप्पा मंदिर के आसपास 10 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया जाएगा। इस टीम में 24 पुलिस सुप्रीटेंडेंट और असिस्टेंट पुलिस सुप्रीटेंडेंट, 11 डिप्टी सुप्रीटेंडेंट, 264 इंस्पेक्टर, 1,185 सब इंस्पेक्टर तैनात किए जाएंगे.वहीं 307 महिला पुलिस समेत 8,402 सिविल पुलिस ऑफिसर्स की मंदिर के आस-पास एक इलाके में ड्यूटी लगाई जाएगी. 15-30 नवंबर तक पहले चरण में सन्निधनम, पम्बा, निलाकल, एरुमेली और पाथनामथिता में सुरक्षा के लिए 2,551 में पुलिसकर्मियों की नियुक्ति की जाएगी.ये भी बताना प्रासंगिक होगा की खुद केरल के मुख्यमंत्री पिमुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने पिछले हफ्ते परेशानी मुक्त तीर्थयात्रा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न विभागों और मंदिर को प्रशासित करने वाले त्रावणकोर देवास्वोम बोर्ड द्वारा की जा रही तैयारियों का जायजा लिया था.
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