Bilkis Bano
बिलकिस बानो

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    नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट 2002 के गुजरात दंगों की पीड़िता बिल्कीस बानो की याचिका पर 13 दिसंबर को सुनवाई करेगा, जिन्होंने मामले में राज्य सरकार द्वारा 11 दोषियों की सजा माफ करने को चुनौती दी है। बानो दंगों के दौरान बलात्कार की शिकार हुई थीं और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ के बानो की याचिका पर विचार करने की संभावना है। बानो ने एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश की समीक्षा के लिए एक अलग अर्जी भी दायर की है।

    शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से नौ जुलाई, 1992 की नीति के तहत दोषियों की समय से पूर्व रिहाई की याचिका पर दो महीने के भीतर विचार करने को कहा था। 15 अगस्त को दोषियों की रिहाई के लिए दी गई माफी के खिलाफ अपनी याचिका में बानो ने कहा कि राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून की जरूरतों को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए आदेश पारित किया। याचिका में कहा गया है, ‘‘बिल्कीस बानो के मामले में दोषियों की समय से पहले रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है और इसके परिणामस्वरूप देश भर में प्रदर्शन हुए हैं।”

    पिछले फैसलों का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया है कि सामूहिक रूप से छूट की अनुमति नहीं है। याचिका में कहा गया कि साथ ही इस तरह की राहत की मांग या अधिकार के रूप में प्रत्येक दोषी के मामले की व्यक्तिगत रूप से, उनके विशेष तथ्यों और अपराध में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के आधार पर जांच किए बिना माफी नहीं दी जा सकती है। याचिका में अपराध का सूक्ष्म विवरण देते हुए कहा गया है कि बानो और उनकी बेटियां इस घटनाक्रम से सदमे में हैं। याचिका में कहा गया, ‘‘सरकार का निर्णय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नागरिकों के लिए एक झटके के रूप में आया और समाज के सभी वर्गों ने रोष, निराशा, अविश्वास दिखाया और सरकार की माफी का विरोध किया है।”

    याचिका में कहा गया, ‘‘जब राष्ट्र अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, तब सभी दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया गया और सरेआम उनको माला पहनायी गयी, सम्मानित किया गया तथा मिठाई बांटी गई। इस तरह पूरे देश और पूरी दुनिया के साथ-साथ वर्तमान याचिकाकर्ता को सभी दोषियों (प्रतिवादी संख्या 3-13) की समय पूर्व रिहाई की चौंकाने वाली खबर का पता चला था।”

    याचिका में कहा गया है कि ऐसी भी काफी खबरें आई थीं कि इलाके के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इन 11 दोषियों की रिहाई के बाद डर के मारे रहीमाबाद से भागना शुरू कर दिया। अलग पुनर्विचार अर्जी में कहा गया है कि बानो को एक दोषी द्वारा याचिका में पक्षकार नहीं बनाया गया था, जिसे अन्य लोगों के साथ राज्य की छूट नीति के तहत रिहा कर दिया गया था।

    शीर्ष अदालत ने दोषियों की रिहाई के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर पहले से सुनवाई कर रही है। बानो 21 साल की और पांच महीने की गर्भवती थीं, जब गोधरा ट्रेन में आग लगने की घटना के बाद भड़के दंगों में भागते समय उनसे सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। हिंसा में बानो के परिवार के मारे गए सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।

    मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी गई थी और उच्चतम न्यायालय ने मुकदमे को महाराष्ट्र की एक अदालत में स्थानांतरित कर दिया था। मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 21 जनवरी 2008 को 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उनकी सजा को बाद में बंबई उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा था। मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग 15 अगस्त को गोधरा उप-जेल से बाहर निकले, जब गुजरात सरकार ने अपनी क्षमा नीति के तहत उन्हें रिहा करने की अनुमति दी। वे जेल में 15 साल से ज्यादा समय पूरा कर चुके थे। (एजेंसी)