चैत्र नवरात्रि के ‘इस’ दिन करें ‘कन्या पूजन’, जानिए सही मुहूर्त और पूजा-विधि

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: ‘कंजक’ यानी ‘कन्या पूजन’ की परंपरा हमारे समाज में कई सालों से चली आ रही है। मान्यता है कि बिना ‘कंजक’ पूजा के ‘नवरात्रि’ का शुभ फल प्राप्त नहीं होता है और माता की कृपा भी अधूरी रह जाती है। ‘नवरात्रि’ (Navaratri) के दौरान कन्या पूजन का विशेष महत्व है।

    शास्त्रों के मुताबिक, माना जाता है कि, नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन करने से मां दुर्गा जल्द प्रसन्न होती हैं। क्योंकि, 10 साल से छोटी कन्या को देवी मां का ही रूप माना जाता है। इसलिए नवरात्रि के दिनों में छोटी कन्याओं को निमंत्रण देकर घर बुलाया जाता है और पैर धुलाकर विधिवत तरीके से भोजन कराकर दक्षिणा देने की परंपरा है। आइए जानें कन्या पूजन की तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि।

    शुभ-मुहूर्त

    अष्टमी तिथि – 9 अप्रैल

    नवमी तिथि – 10 अप्रैल

    अष्टमी तिथि- 8 अप्रैल रात 11 बजकर 05 मिनट से शुरू होकर 9 अप्रैल को देर रात 1 बजकर 23 मिनट तक रहेगी।

    नवमी तिथि- 10 अप्रैल को तड़के 1 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर 11 अप्रैल को सुबह 03 बजकर 15 मिनट तक।

    सुकर्मा योग- 9 अप्रैल सुबह 11 बजकर 25 मिनट से 10 अप्रैल दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक।

    सर्वार्थ सिद्धि योग- 9 अप्रैल सुबह 6 बजकर 02 मिनट तक

    अभिजीत मुहूर्त- 9 अप्रैल सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक।

    पूजा-विधि

    ‘महाष्टमी,’ या फिर ‘नवमी’ के दिन कन्या पूजन करना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए कन्या पूजन के एक दिन पहले कन्याओं को आमंत्रण देना चाहिए। इसके लिए घर का कोई सदस्य कन्या के घर जाकर बुलावा दें। फिर अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं को चरणों को ठीक ढंग से दूध और पानी मिलाकर धोना चाहिए। इसके बाद उनके पैरों को साफ कपड़े से पोछ कर साफ जगह पर बैठा दें। इसके बाद कन्याओं के माथे में रोली, कुमकुम के साथ अक्षत का टीका लगाएं।

    फिर उनके हाथ में मौली बांधें और उन्हें आप चाहे तो चुनरी भी डाल सकते हैं। इसके बाद घी का दीपक जलाकर सभी की आरती करें। इसके बाद उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन कराएं। भोजन में आप हलवा, पूड़ी, चने, दही, जलेबी या फिर अपनी श्रद्धा के अनुसार कुछ भी खिला दें। भोजन कराने के बाद कुमारियों को अपनी योग्यता के अनुसार दक्षिणा दें और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। इसके बाद मां के जयकारे लगाते हुए भूल चूक के लिए क्षमा मांगे और उन्हें सत्कार के साथ विदा करें।

    महत्व

    हिन्दू धर्म में कन्या पूजन का बड़ा महत्व है। कहते है कि, कन्या पूजन करने से माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि, बिना कन्या पूजन के ‘नवरात्रि’ का पूरा फल नहीं मिलता है। इससे माता रानी प्रसन्न होती हैं और सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। कन्या पूजन करने से परिवार के सभी सदस्यों के बीच प्रेम भाव बना रहता है और सभी सदस्यों की तरक्की होती है। 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की कन्या की पूजा करने से व्यक्ति को अलग-अलग फलों की प्राप्ति होती है।

    जैसे कुमारी की पूजा करने से आयु और बल की वृद्धि होती है। त्रिमूर्ति की पूजा करने से धन और वंश वृद्धि, कल्याणी की पूजा से राजसुख, विद्या, विजय की प्राप्ति होती है। कालिका की पूजा से सभी संकट दूर होते हैं और चंडिका की पूजा से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है। शांभवी की पूजा से विवाद खत्म होते हैं, और दुर्गा की पूजा करने से सफलता मिलती है। सुभद्रा की पूजा से रोग नाश होते हैं और रोहिणी की पूजा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं।