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    -सीमा कुमारी

    आज नवरात्रि का छठा दिन है। ‘मां कात्यायनी’ को समर्पित यह दिन हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। मां का छठा रूप ‘माता कात्यायनी’ है।

    मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त मां की पूजा करते हैं, उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। ‘मां कात्यायनी’ को शत्रु और संकटों से मुक्त करने वाली देवी माना गया है। कहा जाता है कि, देवी ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। मां ने महिषासुर का वध किया था और उसके बाद शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था। सिर्फ यही नहीं, सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से भी छुड़ावाया था। आइए जानें ‘कात्यायनी देवी’ की पूजा-विधि, मंत्र, आरती, कथा आदि।

    पूजा-विधि

    • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और फिर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
    • मां की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं।
    • मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
    • मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
    • मां को रोली कुमकुम लगाएं।
    • मां को पांच प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाएं।
    • मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
    • मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान करें।
    • मां की आरती भी करें।
    • मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं। इससे मां प्रसन्न हो जाती हैं। इस दिन मां को लाल रंग के फूल चढ़ाएं।

    इस मंत्र का मंत्रोच्चारण करें

    “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥”

    “ॐ कात्यायिनी देव्ये नमः”

    “कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।”

    “चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना। कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।”

    मां कात्यायनी की आरती

    जय-जय अम्बे जय कात्यायनी

    जय जगमाता जग की महारानी

    बैजनाथ स्थान तुम्हारा

    वहा वरदाती नाम पुकारा

    कई नाम है कई धाम है

    यह स्थान भी तो सुखधाम है

    हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी

    कही योगेश्वरी महिमा न्यारी

    हर जगह उत्सव होते रहते

    हर मंदिर में भगत हैं कहते

    कत्यानी रक्षक काया की

    ग्रंथि काटे मोह माया की

    झूठे मोह से छुड़ाने वाली

    अपना नाम जपाने वाली

    बृहस्‍पतिवार को पूजा करिए

    ध्यान कात्यायनी का धरिए

    हर संकट को दूर करेगी

    भंडारे भरपूर करेगी

    जो भी मां को ‘चमन’ पुकारे

    कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।

    कथा

    महार्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। इसके परिणामस्वरूप उन्हें देवी उनकी पुत्री के रूप में प्राप्त हुई थीं। देवी का जन्म महार्षि कात्यान के आश्राम में हुआ था। इनकी पुत्री होने के चलते ही इन्हें कात्यायनी पुकारा जाता है। देवी का जन्म जब हुआ था उस समय महिषासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया था। असुरों ने धरती के साथ-साथ स्वर्ग में त्राही मचा दी थी। त्रिदेवों के तेज देवी ने ऋषि कात्यायन के घर अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जन्म लिया था। 

    इसके बाद ऋषि कात्यायन ने मां का पूजन तीन दिन तक किया। इसके बाद दशमी तिथि के दिन महिषासुर का अंत मां ने किया था। इतना ही नहीं, शुम्भ और निशुम्भ ने स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया था। वहीं, इंद्र का सिंहासन भी छीन लिया था। सिर्फ इतना ही नहीं नवग्रहों को बंधक भी बना लिया था। असुरों ने अग्नि और वायु का बल भी अपने कब्जे में कर लिया था। स्वर्ग से अपमानित कर असुरों ने देवताओं को निकाल दिया। तब सभी देवता देवी के शरण में गए और उनसे प्रार्थना की कि वो उन्हें असुरों के अत्याचार से मुक्ति दिलाए। मां ने इन असुरों का वध किया और सबको इनके आतंक से मुक्त किया।