फोटो ‘अशोक विजयादशमी’ के रूप में भी मनाया जाता है ‘बौद्ध धम्म दिवस’
भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर ने विजयदशमी के दिन नागपुर में सन् 14 अक्टूबर 1956 (आज ही के दिन) को उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। आज उनके इस निर्णय को याद करने का दिन है। आंबेडकर जानते थे कि भारतीय मन धर्म के बीना रह नहीं सकता, लेकिन क्या यह वही धर्म होगा जिसने उस जीवन का अनुमोदन किया था जिसके कारण दलितों को सदियों से संतप्त रहना पड़ा है। वे इस धर्म को त्याग देना चाहते थे। गरीबी, बहिष्करण, लांछन से भरा बचपन मन के एक कोने में दबाये हुए आंबेडकर ने देखा था कि उनके जैसे करोड़ों लोग भारत में किस प्रकार का जीवन जी रहे हैं। उनके जीवन और आत्मा में प्रकाश शिक्षा ही ला सकती है। यही उन्हें उस दासता से मुक्त करेगी जिसे समाज, धर्म और दर्शन ने उनके नस-नस में आरोपित कर दिया है।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर २०वीं सदी के मध्य में 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने 5,00,000 अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया था।
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डॉ आंबेडकर ने जब बौद्ध धर्म अपनाया तब बुद्धाब्ध (बौद्ध वर्ष) 2500 था।
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विश्व के कई देशों एवं भारत के हर राज्यों से बौद्ध अनुयाई हर साल दीक्षाभूमि, नागपुर आकर धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं
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सम्राट अशोक के इस दिन दीक्षा लेने से बौद्ध धर्म में इस दिवस को ‘अशोक विजयादशमी’ के तौर पर भी मनाया जाता है।
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डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया।
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इस त्यौहार में विश्व के प्रसिद्ध बौद्ध व्यक्ति एवं भारत के प्रमुख राजनेता भी शामिल होते हैं।
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धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर दीक्षाभूमि पर प्रति वर्ष हजारों लोग धर्म परिवर्तन कर बौद्ध धर्म अपनाते हैं।
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सन 2018 में 62वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 62,000 और सन 2019 में 63वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 67,543 अनुयायिओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म अपनाया था।
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