राजनीति में हनीट्रैप, साजिश का सूत्रधार कौन? महाराष्ट्र की यह परंपरा नहीं…!

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महाराष्ट्र के सबसे डैशिंग नेताओं में से एक उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस को जिस तरह रिश्वत देने की पेशकश की गई और फडणवीस परिवार को जिस तरह संकट में डालने की साजिश रची गई, इस पर भूचाल मचना स्वाभाविक है. महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य की राजनीति की भी ऐसी परंपरा नहीं रही, जहां राजनीतिक विचारधारा के दुश्मनों को इस तरह हनीट्रैप में फंसाकर उनके करियर में बाधा खड़ी की जाए. फैशन डिजाईनर हनीट्रैप प्रकरण में भले ही अभी राजनीतिक मंशा का खुलासा नहीं हुआ हो, लेकिन यदि ऐसा कुछ है तो वह पूरे राज्य के लिए घातक है. अपनी राजनीति चमकाने के लिए हनीट्रैप के मोहरों का उपयोग करना किसी भी सूरत में न्यायसंगत नहीं माना जा सकता. 

राज्य के एक बड़े बीजेपी नेता अक्सर यह कहते हैं कि राजनीति का फिलहाल ऐसा दौर चल रहा है, जहां उसको बाहर वालों से उतना खतरा नहीं है, जितना ‘घरवालों’ से होता है. इसका संदर्भ देते हुए वे बताते हैं कि ‘बड़े नेताओं’ को डुबाने में अक्सर उसके भाई-भतीजे, बेटे-बहुएं, पत्नी, जीजा-साले जैसे रिश्तेदार ही आगे रहते हैं. इसलिए उनकी राय यह रहती है कि यदि किसी नेता को वास्तव में बड़ा होना है तो उसने अपने परिवार को अपनी सक्रिय राजनीति से दूर रखना चाहिये. हाल ही में एक और उदाहरण ऐसा देखने को मिला. जब शिंदे गुट के विधायक प्रकाश सुर्वे और एक महिला नेत्री का कथित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.

वीडियो की सत्यता जांचने के लिए राज्य सरकार ने एसआईटी गठित कर दी है, लेकिन कहा जा रहा है कि जिस वीडियो के वायरल होने की चर्चा हो रही है, वह सुर्वे के पुत्र के फेसबुक हैंडल पर लाईव चल रहा था. इसकी सत्यता का भी जल्दी पता चल जाएगा. फडणवीस का मामला इससे एकदम अलग है. उनकी पत्नी का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है. अमृता एक बैंकर है, गायिका है और उनका अपना एक सर्कल है. पूरा मामला ऐसा लगता है कि सिर्फ देवेन्द्र फडणवीस को यदि आप किसी भी गलत काम में नहीं पकड़ सकते तो उसको फंसाने के लिए परिजनों का उपयोग किया जाए तो यह बहुत सही रास्ता नहीं कहा जा सकता. 

ज्यादा चौकस रहने की जरूरत

क्रिकेट बुकी अजय जयसिंघानी की पुत्री अनिक्षा ने जिस तरह अमृता फडणवीस को ट्रैप करने की कोशिश की उसकी बारिकी से देखा जाए तो नेताओं को और भी ज्यादा चौकस रहने की जरूरत है. सोशल मीडिया क्रांति के इस दौर में हमसे कौन मिलता है, हमने किससे मिलना चाहिये, किससे संबंध रखना चाहिये, किसके साथ उठना-बैठना चाहिये, इस पर और ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है. विशेषरूप से ऐसे नेताओं को जो सत्ता में शामिल हैं उनके इर्दगिर्द ऐसे गिरगिटों की संख्या बहुत ज्यादा रहती है, जो सत्ता जाते ही रंग बदल लिया करते हैं. अनिक्षा जयसिंघानी जैसे लोगों पर कितना भरोसा किया जाए और इनको कितनी रियायत दी जाए, इस पर भी विचार करना होगा.

मुंबई की मायानगरी में अच्छे-अच्छे बाजीगर घूमते रहते हैं. इन बाजीगरी से बचते हुए फडणवीस ने मुख्यमंत्री के रूप में अपना सफल पहला टर्म पूरा किया था. मि.क्लीन की उनकी छबि को आज भी कोई चुनौती नहीं है, लेकिन जयसिंघानी जैसे मामले उनकी हिम्मत और हौसले को हिलाने में भूमिका निभा सकते है. अनिक्षा जयसिंघानी ने उपमुख्यमंत्री के घर में घुसने के लिए और अपनी पैठ बढ़ाने के लिए डिजाईनर होने का स्वांग रचा था, जबकि उसका असली मकसद कुछ और ही था. 

जयसिंघानी जैसे मोहरे खत्म होना जरूरी

सवाल यह है कि राजनीति में जयसिंघानी जैसे मोहरे तब तक बने रहेंगे, जब तक नेता-मंडली इनका उपयोग करते रहेंगे. इन मोहरों का खात्मा जरूरी है. अजय जयसिंघानी पर तो 8-10 एफआईआर है और 5 राज्यों की पुलिस उसे खोज रही है. ठगी का मास्टरमाईन्ड पिछले 8 वर्षों से पुलिस के हाथ नहीं लगा है. यह भी एक तरह से डिपार्टमेन्ट का फेलियर ही है कि जिन लोगों की जगह काल-कोठरी में होनी चाहिये, वे सत्ता के गलियारे में खुले आम घूम रहे हैं. जयसिंघानी जैसे मोहरों का यदि कोई भी राजनेता उपयोग कर रहा है तो उसका भी पता लगाना जरूरी हो गया है. वैसे पिछले एक दशक में देश में जिस तरह की राजनीति में रंजिश बढ़ी है, उसका प्रभाव महाराष्ट्र में भी देखने को मिला है. यह कटुता भी रोकना जरूरी है. महाराष्ट्र की राजनीति जितनी मिठास भरी रहेगी, तब ही विकास तेजी से हो सकेगा, वरना बदला लेने की राजनीति और रणनीति किसी के लिए भी ठीक नहीं है.