जबलपुर में नहीं चल सकता खोटा सिक्का, छिंदवाड़ा को पिछड़ा रख सत्तासुख भोगा

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जिस तरह नीम के कीड़े को नीम मीठी लगती है, वैसे ही कमलनाथ के लिए पूरे मध्यप्रदेश (MP) में सिर्फ पिछड़ा हुआ छिंदवाड़ा (Chhindwara) जिला बेहद मनपसंद और अनुकूल है। वजह साफ है। 40 वर्षों में 9 बार लोकसभा के लिए चुने जाने और केंद्रीय मंत्री रहने के बाद भी कमलनाथ (Kamalnath) ने छिंदवाड़ा जिले का रत्ती भर विकास करना बिल्कुल जरूरी नहीं समझा। 

उनके मन में कभी नहीं आया कि छिंदवाड़ा को चमन बनाएं, वहां की आदिवासी, अनपढ़ और गरीब किसानों की बड़ी आवादी यह तक नहीं जानती कि विकास किस बिडिया इसका पूरा-पूरा लाभ कमलनाथ ने उठाया।  जिन ग्रामीणों ने चिड़िया या बाज के अलावा किसी को उड़ते नहीं देखा, उनके लिए आसमान पर कमलनाथ का हेलीकाप्टर मंडराते देखना हैरतअंगेज था।  

उससे किसी सुपरमैन के समान जब कमलनाथ उतरते तो ग्रामीण विस्मित रह जाते ! अपने चुनाव क्षेत्र में मुश्किल से 3 दिन रहकर वे निकल जाते हैं। जिले का कोई व्यक्ति दिल्ली पहुंचा तो उसको काम करा देने का खोखला आश्वासन देकर शाम का वापसी टिकट करा दिया जाता था। लोग इतने में ही संतुष्ट हो जाते थे कि हमारी बात सुनी और लौटने की टिकट भी दे दी।

कमलनाथ ने न तो नागपुर- छिंदवाड़ा रोड बनवाया, न ट्रेन को ब्रॉडगेज करवाया।  छिंदवाड़ा जिले के औद्योगीकरण या कृषि के विकास में कोई रुचि नहीं दिखाई।  

सतपुड़ा रेंज, नरसिंहपुर-अमरवाड़ा इलाका, अमरावती जिले से लगा क्षेत्र, पेंच कन्हान का इलाका सब वैसे के वैसे ही रह गए, कमलनाथ ने जानबूझकर विकास की रोशनी पहुंचने नहीं दी।  शहरी सुविधाएं बढ़ाने की मौज भी नहीं रोची, अब हालत और है कि कमलनाथ कांग्रेस की रही।  उन्हें अपना कोई भविष्य नजर नहीं आता।

जबलपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें खारिज करते हुए कमलनाथ ने कहा कि वह अपना राजनीतिक गढ़ छिंदवाड़ा नहीं छोड़ेंगे। इसी में उनका स्वार्थ है। जबलपुर जाएं तो वहां पढ़े-लिखे समझदार लोग उनके झांसे में नहीं आएंगे। अंधेरनगरी चौपट राजा का खेल सिर्फ छिंदवाड़ा में चलता है। वैसे अंधों में काना राजा बने रहने का सुख वे क्यों छोड़ना चाहेंगे?