कपिल सिब्बल की पुन: सलाह कांग्रेस ढीलापन छोड़ उत्साह दिखाए

    Loading

    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने पुन: सुझाव दिया है कि कांग्रेस को व्यापक सुधार करने की आवश्यकता है ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि अब वह अचेतावस्था में नहीं है. कांग्रेस को चाहिए कि स्वयं को बीजेपी के सशक्त राजनीतिक विकल्प के रूप में पेश करे, जिसकी देश को आवश्यकता है. सिब्बल जी-23 समूह के उन नेताओं में से एक हैं जिन्होंने पार्टी में व्यापक सुधार के लिए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस जनता को यह समझा पाने में विफल रही है कि सांप्रदायिकता चाहे अल्पसंख्यक की हो या बहुसंख्यक की, देश के लिए खतरनाक है. पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया और फिर जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने पर टिप्पणी करते हुए सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस में अनुभवी और युवा के बीच संतुलन स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है. अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोग पार्टी छोड़ रहे हैं. इसके पूर्व उन्होंने कहा कि ‘आया राम, गया राम’ की राजनीति अब ‘प्रसाद’ की राजनीति बन गई है. क्या जितिन को बीजेपी में जाकर ‘प्रसाद’ मिलेगा?

    निष्ठा कैसे बदल जाती है?

    कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बीजेपी को सलाह दी है कि वह ऐसे व्यक्ति को अधिक सम्मान दे जो पिछले 40 वर्षों से बीजेपी में पूरी प्रतिबद्धता के साथ हैं, न कि उस कांग्रेस से आए व्यक्ति को जो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुआ है. आश्चर्य है कि किसी की विचारधारा, प्रतिबद्धता और निष्ठा अचानक कैसे बदल जाती है? अपनी पार्टी में बने रहकर भी मतभिन्नता व्यक्त की जा सकती है. रमेश चाहे जो भी कहें, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के नेताओं में बेचैनी बनी हुई है.

    जिस तरह खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है, उसी प्रकार जितिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने के बाद सचिन पायलट फिर बागी तेवर दिखाने लगे हैं. गत वर्ष उन्हें समझा-बुझा दिया गया था लेकिन उसके बाद भी उनके पास न प्रदेशाध्यक्ष पद आया, न मुख्यमंत्री पद. अब देखना होगा कि कांग्रेस नेतृत्व उन्हें कैसे संतुष्ट कर पाता है. गत वर्ष जब पायलट ने बगावत की थी तब उनके बीजेपी में जाने की चर्चा थी और बीजेपी नेता उनके संपर्क में भी थे. बीजेपी ने अब भी इशारों में पायलट को ऑफर देते हुए कहा कि पार्टी का दरवाजा उन सभी लोगों के लिए खुला है जो देश को प्राथमिकता देते हैं. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा जब जोर मारती है तो नेता बगावती रवैया दिखाने लगते हैं. सचिन पायलट ने पार्टी का फार्मूला ठुकरा दिया और पार्टी महासचिव बनने का हाईकमान का ऑफर अस्वीकार कर दिया. उनकी जिद है कि जब तक उनके विधायकों व समर्थकों को सरकार और पार्टी में शामिल नहीं किया जाता, तब तक वे कोई पद नहीं लेंगे.

    बीजेपी को भी फिक्र

    बीजेपी नेताओं को भी चिंता है कि उत्तरी राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन के जरिए बीजेपी के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है. ऐसा समन्वय यदि हुआ तो बीजेपी के लिए परेशानी होगी. अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में बीजेपी को कांग्रेस सीधी टक्कर देगी. बीजेपी ने जितिन प्रसाद को साथ लिया है ताकि ब्राम्हण वोट हासिल किए जा सकें. यूपी में 13 प्रतिशत  ब्राम्हण मतदाता हैं, जिनके पास पैसा व राजनीतिक पकड़ भी है. परंतु जितिन प्रसाद उन्हें किस तरह प्रभावित कर पाएंगे क्योंकि 2014 व 2019 दोनों लोकसभा चुनावों में जितिन प्रसाद खुद हार चुके हैं. 2017 का विधानसभा चुनाव भी वे नहीं जीत पाए थे.