Keeping promises and tackling problems The real challenge after elections

राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से केंद्र सरकार निपट लेती है लेकिन राज्यों के सामने भी वहां की समस्याएं हैं.

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    देश के 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में मतदान पूरा हो गया. अब नतीजे की प्रतीक्षा है. जो भी पार्टी जीते, उसके सामने अनेक चुनौतियां होंगी. चुनौती के पीछे राष्ट्रीय कारण हों या अंतरराष्ट्रीय, उनसे धैर्य व सूझबूझ से निपटना होगा. भारत का लोकतंत्र अन्य देशों की तुलना में अधिक पेचीदा है. यहां धर्म, जातिवाद, भाषावाद व क्षेत्रवाद का प्रभाव देखा जाता है. इसके अलावा आय में भारी असमानता, गरीबी, बेरोजगारी जैसी समस्याएं दीर्घकाल से चली आ रही हैं. पिछले समय किसान आंदोलन ने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी थी. राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों से केंद्र सरकार निपट लेती है लेकिन राज्यों के सामने भी वहां की समस्याएं हैं.

    देश की राजनीति में उत्तरप्रदेश का विशिष्ट महत्व है. लोकसभा की 80 सीटों वाले इस राज्य ने देश को अधिकांश प्रधानमंत्री दिए हैं. इसी वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में यूपी के सांसदों-विधायकों के अधिक मत मूल्य का भी विशेष असर देखा जाएगा. इसके बावजूद यूपी में गरीबी ज्यादा है. नीति आयोग के अनुमान के अनुसार राज्य की 38 फीसदी आबादी विविध मानकों पर आधारित बहुआयामी गरीबी से ग्रस्त है. यूपी में प्रतिवर्ष 16 लाख स्नातक व परास्नातक तैयार होते हैं लेकिन अधिकांश को नौकरी या रोजगार के लिए बाहरी राज्यों में जाना पड़ता है. यूपी के किसानों के सामने आवारा मवेशियों की समस्या है जो खेतों में घुसकर फसलें बरबाद कर देते हैं. गन्ना किसान अपनी फसल के अच्छे मूल्य की मांग करते हैं. यूपी के कुछ इलाके संवेदनशील हैं जहां आए दिन दंगे हुआ करते थे. इसे राजनीतिक दलों की शह रहती थी लेकिन बीजेपी सरकार आने के बाद असामाजिक तत्वों पर सख्ती की वजह से दंगे रुक गए. योगी सरकार ने कानून-व्यवस्था लागू करने की दिशा में पहल कर माहौल को सुरक्षित बनाया.

    लोकलुभावन नीतियों का खामियाजा

    अन्य राज्य अपनी नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं. पंजाब में पहले गेहूं की ही पैदावार होती थी लेकिन किसानों ने बोरवेल चला-चलाकर धान पैदा करना शुरू कर दिया, जबकि यह फसल वहां के मौसम के अनुकूल नहीं है. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने चुनाव सामने देखकर हजारों करोड़ रुपए का बिजली-पानी बिल माफ कर दिया. पंजाब पर कर्ज का बोझ अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है. एक बार मुफ्तखोरी की आदत लगा दी तो फैसला वापस लेना मुश्किल जाता है. गोवा को खनन राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इस बार चुनाव में अनेक पार्टियों के उतरने से पता नहीं ऊंट किस करवट बैठेगा? यदि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो चुनाव नतीजों के बाद बनने वाला गठबंधन राजनीति की दिशा तय करेगा. मणिपुर में 20 वर्षों से स्थायी सरकारें रही हैं. वहां चुनाव के बाद सशस्त्र सैन्यबल विशेष कानून (अफस्पा) हटाने की मांग जोर पकड़ सकती है. चुनाव में विभिन्न पार्टियों के मतदाताओं ने लुभावने वादे किए. जीतने के बाद इन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी सामने आएगी.

    महंगाई और बढ़ना तय

    हर नई सरकार का पहला कर्तव्य सुशासन स्थापित करना होगा. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से महंगाई में भारी इजाफा होने जा रहा है. क्रूड ऑइल के दाम शिखर पर हैं. चुनाव निपट गए, अब किसी भी समय पेट्रोल-डीजल के दाम काफी बढ़ सकते हैं. कमर्शियल गैस सिलेंडर के दाम तो कभी भी तेजी से बढ़ा दिए जाते हैं. महंगाई से परेशान जनता को आगे भी बढ़ा हुआ बोझ उठाना पड़ेगा. क्या सरकार करों में रियायत देकर लोगों को राहत देगी? पार्टियों के लिए चुनाव जीतना आसान है लेकिन फिर शासन चलाना बहुत बड़ी चुनौती है.