Maharashtra-Karnataka border dispute more fierce

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    भाषावार प्रांत रचना के बावजूद राज्य अपनी स्थिति में संतुष्ट नहीं हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद और उग्र होता जा रहा है. भावनाएं भड़क उठी हैं. आश्चर्य इस बात का है कि दोनों ही पड़ोसी राज्यों की सरकारों में बीजेपी रहने पर भी वैमनस्य बना हुआ है. यह मुद्दा ऐसा है जिसमें क्षेत्रीय हितों को लेकर दोनों सरकार आमने-सामने हैं. बिना राजनीतिक प्रोत्साहन के हिंसा या तोड़फोड़ नहीं होती. 

    कर्नाटक रक्षणा वैदिक संगठन के कार्यकर्ताओं ने उकसावे की कार्रवाई करते हुए महाराष्ट्र के ट्रकों तथा पुणे से बंगलुरू जा रही महाराष्ट्र की गाड़ियों पर पथराव किया और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की. इस बीच महाराष्ट्र के 2 मंत्रियों ने अपने बेलगावी दौरे को रद्द कर दिया है. हिंसक घटना के बाद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को फोन कर गहरी नाराजगी जाहिर की और कहा कि वे कर्नाटक के साथ सीमा विवाद को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पूरी स्थिति से अवगत कराएंगे.

    महाराष्ट्र-कर्नाटक विवाद देश के सबसे पुराने अंतरराज्यीय विवादों में से एक है. यह विवाद 1956 से शुरू हुआ जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद से पारित होकर अस्तित्व में आया. तभी से दोनों राज्य अपनी सीमाओं के कुछ गांव और कस्बों को भाषायी आधार पर अपने राज्य में शामिल करने की मांग करते आए हैं. महाराष्ट्र और कर्नाटक में बेलगाव, खानापुर, निपानी, नंदगाड और कारवार सीमा को लेकर विवाद है. इस विवाद में सबसे ज्यादा चर्चा में बेलगांव रहता है. महाराष्ट्र से सटा यह मराठी बहुल इलाका कर्नाटक सीमा क्षेत्र में आता है. महाराष्ट्र एकीकरण समिति वहां कई बार स्थानीय चुनाव जीत चुकी है.

    महाराष्ट्र के मंत्री बेलगांव पर दावा ठोकते है तो दूसरी तरफ कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र के सोलापुर और अक्कलकोट के कुछ कन्नड़ भाषी इलाकों पर दावा कर कहा कि ये कर्नाटक का हिस्सा बनना चाहते हैं. तनाव बढ़ता ही जा रहा है. महाराष्ट्र के स्वराज्य संगठना ने कर्नाटक को चेतावनी दी कि याद रहे कि तुम्हारी गाड़ियों में भी शीशे लगे है और कन्नड़भाषी भी महाराष्ट्र में रहते हैं. एनसीपी नेता रोहित पवार ने चेतावनी दी कि यदि सतर्कता नहीं बरती गई तो पूरा महाराष्ट्र कर्नाटक में दिखाई देगा. 

    मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि यदि कर्नाटक की जनता ने आक्रामक भूमिका ली तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे. शिवसेना (ठाकरे गुट) नेता संजय राऊत ने कहा कि शरद पवार के नेतृत्व में हम बेलगांव जाने को तैयार हैं. यह भी आशंका व्यक्त की गई कि दिल्ली के समर्थन के सिवाय बेलगांव में मराठी लोगों और महाराष्ट्र के वाहनों पर हमला हो ही नहीं सकता.

    क्या है महाराष्ट्र सरकार का पक्ष

    महाराष्ट्र का कहना ये है कि कर्नाटक का उत्तरी पश्चिमी जिला बेलगावी उसका हिस्सा होना चाहिए. इसके लिए महाराष्ट्र एकीकरण समिति का गठन किया गया. जब मामले ने तूल पकड़ा तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग की सिफारिशें दोनों राज्यों को माननी थी. एक साल बाद 1967 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी. 

    आयोग ने निप्पानी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को और कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में विलय का सुझाव दिया. हालांकि महाराष्ट्र बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को भेदभावपूर्ण बताया और 2004 में राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देते हुए भाषायी आधार पर कर्नाटक से 814 गांवों को हस्तांतरित करने की मांग की. यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है क्योंकि कर्नाटक मामले की सुनवाई में अनुपस्थित रहता है.

    दोनों पक्षों की दलील

    कर्नाटक सरकार की दलील रही है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों की सीमाएं तय करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट का नहीं बल्कि संसद को है. महाराष्ट्र सरकार यह दलील देती है कि अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच के विवादों में सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई का अधिकार है.