Maharashtra politics crisis Shiv Sena's only loss in clash with rebels, NCP-Congress only mute spectators

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    हालात कुछ ऐसे हैं कि खरबूजा चाकू पर गिरे या चाकू खरबूजे पर, नुकसान खरबूजे का ही होना है. शिवसेना विरुद्ध बागी का जो टकराव चल रहा है, उसमे हर प्रकार से नुकसान शिवसेना का ही है. बगावत के धधकते शोले पार्टी को ही झुलसाएंगे. जबतक पार्टी में एकजुटता बनी रहती है तबतक बंधी मुट्ठी लाख की कही जा सकती है. जब कोई अपना जुदा हो जाए तो कुनबे की ताकत घट जाती है. शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे की बनाई शिवसेना से पहले भी छगन भुजबल और नारायण राणे अलग हुए लेकिन इस समय जो झटका लगा है, उसे मीडिया ‘भूकंप’ की संज्ञा दे रहा है. इस राजनीतिक भूचाल ने पार्टी को झकझोर कर रख दिया है. सवाल यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत, तथ्य यह है कि उद्धव ठाकरे अपना खेमा एकजुट नहीं रख पाए. इतने लंबे समय से असंतोष पनप रहा था लेकिन उस पर ध्यान न देना उन्हें महंगा पड़ा. बागियों की हलचलों का पता लगाने में भी सरकार का खुफिया विभाग नाकाम रहा. समय पर एक टांका लगा दिया जाए तो बाद में 9 टांके लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.

    क्या कर सकती हैं सहयोगी पार्टियां

    महाविकास आघाड़ी में शामिल एनसीपी और कांग्रेस इस स्थिति में करें भी तो क्या? यह शिवसेना का आंतरिक मामला है. कोई अन्य पार्टी इसमें कैसे और क्यों दखल दे? इसीलिए एनसीपी और कांग्रेस मूकदर्शक बनी हुई हैं. इसके बावजूद उद्धव ठाकरे की कुछ उम्मीद एनसीपी प्रमुख व अनुभवी नेता शरद पवार से लगी होगी कि वे संकट में कोई राह दिखाएं. वास्तव में उद्धव सरकार में हमेशा एनसीपी को झुकता माप मिलता रहा, इसीलिए बागी विधायकों में नाराजगी है. वैचारिक भिन्नता के बावजूद कांग्रेस ने बेमेल गठबंधन वाली आघाड़ी में शामिल होना इसलिए तय किया था क्योंकि ऐसा करने से सरकार में साझेदारी मिलेगी और बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जा सकेगा.

    BJP की दूरदर्शिता

    महाराष्ट्र में विपक्षी दल की भूमिका में बीजेपी कभी संतुष्ट नहीं रही. देवेंद्र फडणवीस बार-बार कहते रहे कि मी पुन्हा येईन (मैं फिर वापस आऊंगा). शिवसेना की फूट को अवश्य ही बीजेपी ने हवा दी होगी. बागियों का यही कहना है कि शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस का साथ छोड़कर फिर बीजेपी के साथ युति कर लेनी चाहिए. बागियों को पहले सूरत और फिर गुवाहाटी ले जाने और इतने दिनों तक उनका भारी भरकम खर्च उठाने के पीछे कौन है, यह सभी जानते हैं. गुजरात और असम दोनों ही बीजेपी शासित राज्य हैं. महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस व शिवसेना के बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे के बीच वडोदरा में गुप्त बैठक होने की खबर है. निश्चित तौर पर महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन की रणनीति आकार ले रही है. एक के बाद एक विपक्ष शासित राज्यों को बीजेपी अपने कब्जे में लेने में लगी है. इसके लिए असंतुष्टों या बागियों का इस्तेमाल किया जाता है. कभी बात बन जाती है तो कभी नहीं. मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत से कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरी और शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी का सत्ता में पुनरागमन हुआ था. इसके विपरीत राजस्थान में बीजेपी का खेल सफल नहीं हो पाया था. बीजेपी की दूरदर्शिता यह है कि महाराष्ट्र के मामलों में उसका कोई नेता प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आ रहा है. इससे सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने बागियों को मझधार में छोड़ दिया है? वैसे सभी समझते हैं कि तोप दागने के लिए बागियों के कंधे का सहारा लिया जा रहा है.