Mayor election in Delhi, only elected members will be able to vote

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    दिल्ली महानगर निगम (एमसीडी) के चुनाव के बाद से 2 माह का समय बीत चुका है लेकिन महापौर और उपमहापौर का चुनाव अब तक नहीं हो पाया है. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) को निर्देश दिया कि मेयर को चुनने के लिए एमसीडी की पहली मीटिंग 24 घंटे के भीतर बुलाई जाए. पहले महापौर चुना जाए और फिर महापौर की अध्यक्षता में उपमहापौर व स्थायी समितियों के चुनाव कराए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने एलजी की यह मांग ठुकरा दी कि पहली बैठक में मनोनीत सदस्यों को वोट डालने दिया जाए और कहा कि सिर्फ निर्वाचित सदस्य ही मतदान करेंगे.

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आम आदमी पार्टी के लिए बड़ी कानूनी जीत हे. इस मामले में संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट है. विशेष क्षेत्रों में अपने ज्ञान व अनुभव के आधार पर मनोनीत किए सदस्यों को महापौर, उपमहापौर तथा स्थायी समितियों के चुनाव में मतदान करने का कोई अधिकार नहीं है. दिल्ली महानगर निगम के 250 वार्ड में से 134 वार्ड में ‘आप’ ने बहुमत हासिल किया. बीजेपी ने 104 वार्ड में चुनाव जीता. इतने पर भी अभी तक मेयर व डिप्टी मेयर का चुनाव नहीं हो पाया था. सदस्यों की बैठक 6 और 24 जनवरी को हुई लेकिन बीजेपी और आप सदस्यों के शोरगुल व हंगामे के बीच पीठासीन अध्यक्ष ने सभा बर्खास्त कर दी.

    6 फरवरी की बैठक में भी दिल्ली के नए मेयर का चुनाव नहीं हो पाया. दिल्ली महानगर निगम के अधिनियम 1957 के मुताबिक नगरीय चुनावों के बाद पहली ही बैठक में महापौर और उपमहापौर का निर्वाचन हो जाना चाहिए. सारा विवाद प्रथम बैठक के पहले दिल्ली के एलजी द्वारा 10 सदस्यों के मनोनयन को लेकर था जिन्हें कि एल्डरमैन कहा जाता है. आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि मेयर के चुनाव में जोड़तोड़ करने के लिए बीजेपी और एलजी के बीच आपसी मिली भगत है.

    ‘आप’ ने एलजी द्वारा मनोनीत सदस्यों को मतदान का अधिकार दिए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कोर्ट की देखरेख में मेयर का चुनाव कराने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अनिश्चितता दूर हो गई. यह सचमुच आश्चर्य की बात थी कि दिसंबर में मतदान के बावजूद अब तक दिल्ली को महापौर-उपमहापौर नहीं मिले थे. सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकतंत्र की जीत है.