लॉकडाउन को भूली नहीं जनता, अनेक राज्यों से मजदूरों की घर वापसी

    Loading

    प्रधानमंत्री मोदी के आश्वासन के बाद भी प्रवासी मजदूर रुक नहीं रहे हैं. महानगरों व कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र तथा दक्षिणी राज्यों से मजदूरों की घर वापसी शुरु हो गई है. वे मानकर चल रहे हैं कि कोरोना वायरस के कारण तेजी से बिगड़ रहे हालात को देखते हुए अचानक लॉकडाउन लग सकता है. फिर उनके पास न रहने को जगह रहेगी न करने को काम. रोजी-रोटी के लिए तरसने की नौबत आ जाएगी. यदि मरना ही है तो अपने घर जाकर अपनों के बीच मरें.

    बाहर रहे तो उन्हें कोई पूछनेवाला नहीं है. इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा कि सौ साल की सबसे बड़ी महामारी से भारत की लड़ाई अब तीसरे साल में प्रवेश कर चुकी है. ओमिक्रान वैरिएंट पुराने सभी वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैल रहा है. ऐसी हालत में मेहनत हमारा एक मात्र पथ है और विजय एकमात्र विकल्प है. हम 130 करोड़ भारतीय अपने प्रयासों से कोरोना से जीतकर जरूर निकलेंगे. इधर स्वास्थ्य विशेषज्ञ स्थितियों का आकलन कर रहे हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि हम सभी को ज्यादा सतर्क रहना होगा लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जनता में पैंनिक या बेचैनी का माहौल न बने.

    प्रधानमंत्री पहले भी देशवासियों की हिम्मत बढ़ाते रहे हैं. कभी उन्होंने एक साथ ताली या थाली बजाने को कहा था तो कभी घर की छत या गैलरी पर दीये जलाने को कहा था. एक बार उन्होंने यह भी कहा था कि महाभारत का युद्ध भी 21 दिनों तक चला था. जब संक्रमण तेजी से फैल रहा है तो प्रवासी मजदूर कैसे पीएम के आश्वासन पर भरोसा करें. हालात अब भी पहले जैसे दिख रहे हैं. बंदिशें कभी भी सख्त हो सकती है. इसे देखते हुए मुंबई, कोलकाता, सूरत, दिल्ली समेत देश के ज्यादातर बड़े शहरों में काम कर रहें लाखों प्रवासी मजदूरों के सामने घर लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

    संक्रमण और फैलेगा

    यदि बिना जांच पड़ताल के लाखों प्रवासी मजदूर वापस गांव पहुंच गए तो नए संक्रमण की एक बड़ी लहर उठने का खतरा है और फिर उसे संभाल पाना किसी भी सरकार के लिए असंभव जैसा हो जाएगा. इसी दौरान यूपी, उत्तराखंड में चुनावी माहौल भी है. इसलिए प्रवासी मजदूरों की वापसी से संकम्रण और बढ़ सकता है. मजदूर यह सोचकर भी आशंकित हैं कि यदि वे रुके रहे तो मुसीबत के वक्त ट्रेन या बस सुविधा उपलब्ध होगी या नहीं.

    राज्यों को भी इंतजाम करना होगा

    ट्रेनों से प्रवासी मजदूरों को लाते समय उनकी कोरोना जांच कर ली जानी चाहिए ताकि गांव में रहने वाले उनके परिवार के सदस्यों को संक्रमित होने के खतरे से बचाया जा सके. बड़ी तादाद में लौटने वाले मजदूरों की जांच और गांव के बाहर सुरक्षित स्थान पर उनको ठहराने का काम राज्यों को करना होगा. वह सुनिश्चित करना होगा कि गांव के भीतर जानेवाला हर प्रवासी श्रमिक वायरस संक्रमण से मुक्त हो. गांव में पर्याप्त इंतजाम नहीं है इसलिए बचाव या एहतियात ही एकमात्र रास्ता है.

    अर्थव्यवस्था की धुरी हैं

    प्रवासी मजदूर 28 खरब डालर की अर्थव्यवस्था के चक्र को चलाते हैं जिनकी अनुमानित संख्या 10 करोड़ से ज्यादा हैं जो कि मोटे तौर पर जर्मनी, ब्रिटेन और कनाडा के संयुक्त कार्यकाल के बराबर है. विगत वर्ष अचानक लॉकडाउन की घोषणा का खामियाजा उन्होंने भुगता था वे पैदल ही सैकड़ों मील दूर अपने गांव की ओर निकल पड़े थे. उस समय औरंगाबाद के पास मालगाड़ी की चपेट में आकर रेल पटरी पर सोए 16 प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी.

    कितनों ने रास्ते में भूख-प्यास और कमजोरी से दम तोड़ दिया था. लॉकडाउन लगने पर प्रवासी मजदूर तभी घर जा सकते हैं जब उनके गृहराज्य उन्हें स्वीकार करने को तैयार हों. पिछली बार बिहार और बंगाल ने इसका विरोध किया था बिहार के हजारों मजदूर जो ट्रेन से जाने के लिए केरल का कैम्प छोड़ चुके थे, अपने घर नहीं जा सकते थे. तब इस बात पर भी तकरार हुई थी कि प्रवासी मजदूरों के रेल किराए का भुगतान कौन करेगा- रेलवे या राज्य? राज्यों ने सिर्फ 15 प्रतिशत किराया देना स्वीकार किया था. इस तरह की मुसीबतों से इन गरीबों को बचाना होगा.