एसटी कर्मचारी अपने लिए सरकारी कर्मचारी का दर्जा मांग कर एसटी महामंडल के विलय की मांग कर रहे थे.
महाराष्ट्र की लालपरी कही जानेवाली एसटी के हजारों कर्मचारियों की 5 महीने चली बेहद लंबी हड़ताल से राज्य की जनता को भारी परेशानी झेलनी पड़ी. कर्मचारियों और सरकार की खींचातानी में यातायात पर गंभीर असर पड़ा. दीपावली के 4 दिन पहले से एसटी बसों के पहिए थम गए. राज्य के 250 एसटी डिपो में से अधिकांश में हड़ताल चलती रही. विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र, कोंकण में यात्रियों का बुरा हाल हुआ. त्योहार पर लोग अपने घर जाने से वंचित रह गए या फिर निजी ट्रैवल्स की बसों या टैक्सी का अनाप-शनाप किराया देने पर मजबूर हुए. एसटी हड़ताल से निजी बस आपरेटरों की चांदी हो गई थी जिन्होंने मनमाना किराया वसूल किया और ओवरलोड गाड़ियां चलाईं. एसटी कर्मियों की हड़ताल की वजह से मध्यप्रदेश, गुजरात व अन्य पड़ोसी राज्यों में जाने वाली एमएसआरटीसी की बसें बाधित हुईं.
करोड़ों का नुकसान
बसें नहीं चलने से एसटी निगम के राजस्व में प्रतिदिन करोड़ों रुपए का घाटा होता रहा. लंबी हड़ताल की वजह से आर्थिक तंगी और तनाव के चलते 30 से ज्यादा एसटी कर्मचारियों ने आत्महत्या कर ली. कर्मचारियों का रुख यदि हठीला था तो सरकार भी झुकने के लिए तैयार नहीं थी. इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ा. ग्रामीण भागों में तो हालात विकट हो गए. यातायात का साधन ही नहीं रह गया. बीमारों को इलाज के लिए शहर ले जाना कठिन हो गया. कर्मचारी संगठनों की शिकायत थी कि एसटी महामंडल ने इस आधार पर महंगाई भत्ते, किराए भत्ते, वेतन वृद्धि का भुगतान नहीं किया कि एसटी घाटे में चल रही है.
विलय की मांग नहीं मानी गई
एसटी कर्मचारी अपने लिए सरकारी कर्मचारी का दर्जा मांग कर एसटी महामंडल के विलय की मांग कर रहे थे. सरकार के लिए ऐसा करना संभव नहीं था, क्योंकि एक महामंडल का विलय किया जाए तो एक दर्जन से ज्यादा अन्य महामंडल के कर्मचारी भी इसी तरह की मांग करने लगते. सरकार वेतन वृद्धि के लिए राजी हो गई थी लेकिन कर्मचारी संगठनों ने हड़ताल लंबी खींची. इस दौरान सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसमें वित्त और परिवहन विभाग के सचिव शामिल थे. समिति ने सभी 28 ट्रेड यूनियनों के साथ कर्मचारियों के विचार भी सुने. अदालत के आदेश की अवहेलना कर हड़ताल जारी रखने के कारण यूनियन पदाधिकारियों के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया गया. हाई कोर्ट के निर्देश का भी हड़तालियों पर कोई असर नहीं पड़ा. इतना लंबा आंदोलन खींचने से कर्मचारियों को आखिर क्या मिला? विलय की मांग नहीं मानी गई. नवनियुक्त कर्मचारियों को वेतन में 10 वर्ष के लिए 5000 रुपए की वृद्धि की गई. 10-20 वर्ष सेवा कर चुके कर्मचारियों के वेतन में करीब 4,000 रुपए वेतन वृद्धि की गई. सरकार की कड़ी चेतावनी के बाद अंतत: कर्मियों को काम पर वापस लौटना पड़ा.