हरित क्रांति के जनक थे स्वामीनाथन

Loading

हरित क्रांति के जनक डा. एम.एस. स्वामीनाथन को देश कभी नहीं भूल सकता. 1960 के दशक में उन्नत जेनेरिक बीजों के जरिए गेहूं और धान का उत्पादन बढ़ाकर देश को भुखमरी से बाहर निकालने का श्रेय उन्हें जाता है. वह ऐसा बेहद कठीन समय था जब भारत अनाज के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने पर विवश था और तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देशवासियों से सप्ताह में एक दीन उपवास करने की अपील की थी. डा. स्वामीनाथन ने किसानों के कंधे से कंधा मिलाकर जबरदस्त पैदावर सुनिश्चित की. उनका लक्ष्य अनाज की अधिक फसल देनेवाली नई किस्मों को विकसित करना था. जिसमें उनहें कामयाबी मिली.

कृषि में उनके अभूतपूर्व योगदान ने लाखों लोगों का जीवन बदल दिया और देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की. किसानों ने सशक्तिकरण में उनका अहम योगदान था. उनकी अध्यक्षता में 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया गया. स्वामीनाथन आयोग की 2 सिफारिशें अहम साबित हुई. इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का औसत लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा रखने तथा महिला किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड जारी करने का समावेश था. डा. स्वामीनाथन 1979-80 में कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव रहे.

वे ऐसे कृषि वैज्ञानिक थे जिन्हें डालोरा की 84 मानद उपाधियां मिली. इनमें से 25 अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने दी थी. देशवासी कृषि क्षेत्र में उनके योगदान का सदैव स्मरण करेंगे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डा. स्वामीनाथन को श्रद्घांजलि अर्पित करते हुये कहा कि अनुसंधान के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्घता ने अनगिनत वैज्ञानिकों और इकोवेटर्स पर अमिट छाप छोड़ी है.