बंधा हुआ है परसेंटेज हर सरकार में मौजूद तबादला उद्योग

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समाजसेवी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का कोई असर नहीं पड़ा. रिश्वत का लेन देन बदस्तूर जारी है. नीचे से ऊपर तक व्याप्त भ्रष्टाचार मानो शिष्टाचार बन चुका है. इसके बगैर काम ही नहीं होता. बेशर्म नेता और अधिकारी मानकर चलते हैं कि उन्हें इस तरह की अवैध वसूली का विशेषाधिकार मिला हुआ है. जो लोग वैध तरीके या सीधे रास्ते से कोई काम करना चाहते है उन्हें तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद बार बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर कटवाए जाते हैं.

समूचे सिस्टम को भ्रष्टाचार का धुन लग चुका है. हमारे राष्ट्रनिर्माताओं और स्वाधीनता सेनानियों ने ऐसे आजाद देश की कल्पना नहीं की थी जहां कदम-कदम पर रिश्वत का  बोलबाला हो. यह कटु सत्य है कि यदि कोई व्यक्ति यह संकल्प करके चले कि न तो यह रिश्वत लेगा और न किसी को देगा तो उनका कोई भी काम हो पाना मुश्किल है. लालफीताशाही में उसका आवेदन अटक जाएगा. हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है जो कि हमारे भारत महान के लिए अत्यंत शर्म की बात है.

महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने शिंदे-फड़णवीस सरकार पर अधिकारियों की बदली के लिए रिश्वत लिए जाने का गंभीर आरोप लगाया है. उन्होंने बदली रेटकार्ड का खुलासा करते हुए बता दिया कि जिलाधिकारी से लेकर कृषि सहायक समेत कई बड़े अधिकारियों के तबादले के लिए रिश्वत ली जाती है.

कुछ खाप विधायकों की सिफारिश पर ट्रांसफर किए जा रहे हैं. बड़े अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी खुलकर बोलने के लिए तैयार नहीं हैं. एक कृषि सहायक जैसे छोटे पद के लिए भी 3 लाख रुपए की बोली शुरू है. अजीत ने सवाल किया कि जिन अधिकारियों को बदली के लिए  लाखों रुपए का भुगतान करना पड़ता है, वे ईमानदारी से कैसे काम कर सकते हैं? कुछ समय पूर्व सांसद राजू शेट्टी ने भी मुख्यमंत्री और राज्यपाल के सामने यह मुद्दा उठाते हुए बदली रेटकार्ड को लेकर जानकारी भेजी थी. इस रेट कार्ड में पूरे रिश्वत सिंडिकेट का जिक्र किया गया था.

वसूली का टारगेट

तथ्य यह है कि तबादला करने या रूकवाने में रिश्वत और हर काम में परसंटेज वसूल करने का तौरतरीका हर सरकार में होता है. अफसरों को वसूली का टारगेट दिया जाता है. रकम नीचे से वसूल कर ऊपर तक पहुंचाई जाती है. रिश्वत लेनेवाला अफसर भी अपने स्वार्थ के लिए ऊपर के लोगों को रिश्वत देता है. वेतन चाहे जितना मिले, रिश्वतखोरी से लोग बाज नहीं आते. जनता के सेवक कहलाने वाले उसका निर्ममता से शोषण करते हैं. प्रशासन के कितने ही मोहकमे तो रिश्वत के लिए काफी बदनाम हैं.

वे कल क्या थे और आज क्या हो गए 

स्कूटर पर वोट मांगनेवाले नेताओं के सत्ता में आते ही शक्कर कारखाने, सूत गिरणियां, शिक्षण संस्थान खुल जाते हैं. उनके पास आलीशान बंगले और महंगी कारें कहां से आ जाती है? राजनीति या नेतागिरी में जितनी तेजी से दौलत कमाई जा सकती है, उतनी किसी उद्योग-व्यवसाय में संभव नहीं है. हमारे सांसदों और विधायकों में अधिकांश करोड़पति हैं. चाहे पक्ष हो या विपक्ष, कोई दूध का धुला नहीं है. बहती गंगा में सभी हाथ धोते हैं. ईमानदारी की कमाई चिराग लेकर ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलेगी. अपार संपत्ति होने के बावजूद सांसद-विधायक जब भी चाहते है, प्रस्ताव पारित कर अपना वेतन-भ त्ता बढ़ा लिया करते हैं. वे कदापि नहीं चाहते कि उनके मातहत जो नौकरशाह है, उसका वेतन भत्ता उनके बराबर रहे. कम पढ़े-लिखे नेता भी अनेक कॉलेज खोलकर शिक्षा महर्षि कहलाते देखे गए हैं.