Three-thirteen and twenty-three in Rajasthan politics

Loading

राजस्थानी में एक कहावत है- तीन- तेरह, इसका मतलब बिखराव से लिया जाता है, किसी कुनबे के लोग एकजुट नहीं होते तो कहा जाता है कि वो तीन तेरह हो गए. इस कहावत की याद कैसे आई, तो वजह ये है कि विश्व की सबसे बड़ी पार्टी की प्रदेश में हालत भी ऐसी ही हो गई है. इस पार्टी ने राजस्थान में 2003 में विधानसभा चुनाव से पहले परिवर्तन यात्रा निकाली जो सफल रही, राज आ गया. प्रदेश में पहली बार कमलदल ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई, रानी साहिबा की ताजपोशी हुई, चारों ओर हरियाली ही हरियाली. उस वक्त महाराष्ट्र के प्रमोद महाजन ने चुनावी वैतरणी पार लगाने में अहम भूमिका निभाई थी. पांच साल बाद हुए 2008 के चुनाव में जादूगर ने बाजी पलट दी लेकिन 2013 में फिर रानी ने कमान संभाली, सुराज संकल्प यात्रा शुरू की. इस यात्रा में ‘उनकी’ एंट्री नहीं थी, समझ तो गए ही होंगे आप. एकमात्र स्वघोषित स्टार प्रचारक होने का तमगा लिए घूमने वाले साहब को यह बात बहुत नागवार गुजरी.

2013 में रानी फिर तख्तनशीं हो गईं, 2014 में दिल्ली में राज बदल गया, समय बदल गया. 5 साल फिर गुजर गए, चुनाव आ गए तो तेरह का बदला अठारह में इस तरह लिया गया कि एक जुमला चला …से बैर नहीं, …तेरी खैर नहीं! इसका असर ये हुआ कि राज बदल गया साहब, अठारह में जादूगर का जादू चल गया. पूरे पांच साल रानी साहिबा को हाशिए पर ढकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई लेकिन, यह काम इतना आसान नहीं था. उपर वालों को इतना भी समझ में नहीं आया कि केवल उनके ही सुर्खाव के पर नहीं लगे हैं. किसी प्रदेश की मुखिया और वो भी दो बार बन जाए, तो इतनी तो व्यवस्था हो ही जाती है कि ‘नेटवर्क’ बन जाता है, एक समर्थक वर्ग तैयार हो जाता है. इसी बीच कोरोना के दौरान ही सत्ताधारी दल के प्रदेश अध्यक्ष को फुसलाकर सरकार बदलने की नाकाम कोशिश की गई. जादूगर का जादू खत्म करने के लिए मंतर भी पढ़ दिए, अघोषित चाणक्य ने चौसर बिछा दी लेकिन पल्ले कुछ नहीं पड़ा, किरकिरी हुई सो अलग. उस वक्त तक भी समझ में नहीं आया कि मैडम के पास भी कोई जादू की पुड़िया है. उनका विकल्प तैयार करने की तमाम तिकड़में बैठाई गईं लेकिन नतीजा सिफर. साहब की तो ये हालत थी कि ‘खाता न बही, मैं कहूं जो सही, मेरा आदेश ही कानून है, मैं ही सही हूं, बाकी सब गलत, एक मैं ही ईमानदार हूं, बाकी सब चोर’ तो ऐसे में कुछ हुआ नहीं. खैर!

यूं करते करते 2023 के विधानसभा चुनाव तो आ ही गए, साहबान अपनी जिद छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन यह भी महसूस हो रहा है कि राजस्थान में राज नहीं बदला तो दिल्ली में राज बदल जाएगा. अब क्या किया जाए. गौर फरमाइए, मैडम की ‘बॉडी लैंग्वेज’ कुछ बदल बदली सी नजर आ रही हैं. जादूगर इतने जंतर मंतर कर चुके हैं कि अब उन्हें रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. साहबान ने इतना रायता फैला दिया है कि इसे समेटना भारी हो रहा है, मैडम को न आगे किया जा सकता है न पीछे, तो क्या किया जाए. ऐसे में जो चल रहा है उसे चलने दिया जाए और जो होगा उसे देखा जाए. अपनी चोट की परवाह ना करते हुए मुखियाजी चुनाव प्रचार पर निकल पड़े हैं, उन्होंने एक बार कहा था कि विपक्षियों को डर है कि कहीं मैं व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही चुनाव ना जीत जाऊं, उनकी बात सच साबित होती नजर आ रही है.

इधर, देश की सबसे पुरानी पार्टी ने भी भांप लिया है जादू केवल वे ही कर सकते हैं और इतना ही नहीं इस बार वे इसे दोहरा भी रहे हैं. कमलदल की पंखुड़ियां बिखरी नजर आ रही हैं तो पुरानी पार्टी का एकजुट होकर चुनाव मैदान में जाना लाजमी है. सारे मतभेद भुला दिए गए हैं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष को ठण्ड रखने को कहा दिया गया है, पूरा ध्यान चुनावी वैतरणी पार करने पर लगा हुआ है. 2023 के ये चुनाव ओल्ड पार्टी के लिए जीवन मरण का प्रश्न है, यह नहीं जीत पाए तो 2024 कोई आस नहीं बचेगी. इस बूढी पार्टी की रगों में भी नया जोश आ गया है. अपने पुराने वोट बैंक को साधने के लिए इस बिरादरी के बीकानेरी नेता को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया है. पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष तो इसी समुदाय से हैं, इसका भी लाभ पार्टी को मिल सकता है. बीकानेरी साफे वाले नेताजी को कमलदल ने आगे किया था लेकिन उनके दिल के अरमां आसूओं में बह गए लगते हैं. वे अगली चाबी भरे जाने का इंतजार कर रहे हैं.

कहने का मतलब यह है कि जादूगर की योजनाओं का असर जनता की जुबान से होता हुआ सिर चढ़कर बोल रहा है और कमलदल वालों को पता ही नहीं कि यह असर उतरेगा कैसे. ऐसे में जादूगर सुखाडिया बनने की ओर कदम बढ़ा चुके हैं और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी को तो ‘राम ही धणी’है!!