Useless officials of Telecom and Railways were removed, strict steps should be followed by the state

    Loading

    प्रशासन तंत्र को सुचारू रूप से चलाना हो तो सख्ती भी जरूरी होती है. इसके बगैर अनुशासनहीन तत्व सुधरते नहीं. शांत और साधु स्वभाव का व्यक्ति कभी शासक या प्रशासक नहीं बन सकता. इसके लिए दृढ़ता से काम लेनेवाला और सिस्टम को सुधारने की क्षमता रखनेवाला व्यक्ति चाहिए जो प्रशासन तंत्र को सक्षम व मजबूत रख सकें. दया या संवेदना केवल उन्हीं के प्रति दिखानी चाहिए जो इसके पात्र हों, ऐसे लोगों के लिए नहीं जो ढील या नरमी का गलत फायदा उठाकर लापरवाही बरतते हों.

    कहा गया है कि एक सड़ा सेब टोकरी में रखे सभी सेबों को सड़ा डालता है इसी तरह एक नाकाबिल, सुस्त और लापरवाह अधिकारी प्रशासनिक प्रणाली का बंटाढार कर देता है. उसके सहकर्मी उसी का अनुकरण करने लगते हैं. अच्छी आदते सीखने में देर लगती है लेकिन संगत दोष से बुरी आदते जल्दी लग जाती हैं. केंद्रीय रेल व दूरसंचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रेल मंत्रालय के 40 निकम्मे अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई की थी. अब उन्होंने दूरसंचार विभाग में भी इसी तरह की सख्ती दिखाई है.

    वैष्णव ने ऐसे कामचोर अधिकारियों पर एक्शन लिया जो ऊंचे पदों पर बैठकर जिम्मेदारी की बजाय नि्क्रिरयता दिखा रहे थे. यदि अन्य केंद्रीय विभाग भी ऐसी सख्ती दिखाएं तो आधे मंत्रालय खाली हो जाएं. राज्यों को भी चाहिए कि इसका अनुसरण करते हुए अपने यहां के निकम्मे अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करें. ऐसे लोगों की मानसिकता कुछ ऐसी होती है कि एक बार सरकारी नौकरियां ऊंचा पद मिल गया तो काम न करने पर भी वेतन-भत्ता मिलता रहेगा और प्रमोशन होता चला जाएगा. दूरसंचार मंत्री ने टेलीकाम मंत्रालय के संयुक्त सचिव समेत विभाग के 10 वरिष्ठ अधिकारियों को जबरन सेवानिवृत्त करने पर मुहर लगा दी.

    मोदी सरकार की भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति तथा काम करो या काम छोड़ो अभियान के तहत यह छंटनी की गई. इस अधिकारियों को सूचित किया गया कि उन्हें तत्काल सेवा मुक्त किया जाता है. निकम्मे अधिकारी सिर्फ टाइमपास करते हैं. फाइलें अटका कर रखते हैं और कोई निर्णय नहीं लेते. ऊपर से आए आदेशों का भी त्वरित पालन नहीं करते. उनमें कर्तव्यपालन या तत्परता नाम का गुण ही नहीं होता. ऐसे अफसर नाली में अटके उस लकड़ी के टुकड़े के समान होते है जो खुद को भखड़ा-नेगल बांध समझकर प्रवाह को रोक देता है.

    ऐसे निकम्मे अधिकारियों की वजह से सरकार की नीतियों में अवरोध आ जाता है और सरकार के उपयोगी कदम जनता तक नहीं पहुंच पाते. कुछ अधिकारी तो इतने मगरूर होते हैं कि खुद को परमानेंट और मंत्री को टेम्पररी मानकर चलते है. उन्हें गुमान रहता है कि सरकार का असली पावर तो उन्हीं के हाथों में रहता है. ऐसा बेखौफ अधिकारी भी अपनी गफलत की वजह से कभी पकड़ में आ जाता है. गत सितंबर माह में सरकारी दूरसंचार कंपनी बीएसएनएल के एक वरिष्ठ अधिकारी को मंत्री अश्विनी वैष्णव की बैठक में झपकी लेते हुए पाए जाने पर वीआरएस या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी गई थी.

    कड़ा फैसला लेनेवाले मंत्री वैष्णव के पास ऐसे अधिकारियों का लेखाजोखा है जिन पर भ्रष्टाचार या निकम्मेपन के आरोप लगे है तीाा जिनकी ईमानदारी संदिग्ध है. ऐसे अफसर सरकार के किए-कराए पर पानी फेर देते हैं. मोदी सरकार जब नि्क्रिरय मंत्रियों को बर्दाश्त नहीं करती तो कमचोर और ढीले अफसरों की मनमानी क्यों चलने देगी? अनुशासन और कार्यकुशलता लाने के लिए ऐसे सख्त कदम वास्तव में जरूरी हैं.