जरासंध से हारे नहीं थे कृष्ण ने युद्ध टाला था

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जब भी स्कूलों में कोई पुस्तक पढ़ाई जाए तो उसमें विवादास्पद बातों को टालना चाहिए क्योंकि बाल मन हर चीज को सहजता से ग्रहण कर लेता है. बच्चों में बड़ों के समान तर्क और विश्लेषण की शक्ति नहीं होती. केंद्रीय विद्यालय के कक्षा 7 के विद्यार्थियों को ‘बाल महाभारत कथा’ (Bal Mahabharat Katha) नामक हिंदी की पूरक पाठ्य पुस्तक पढ़ाई जा रही है. यह किताब राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने जारी की है. इस पुस्तक में लिखा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण को जरासंध (Jarasandh) ने युद्ध में हरा दिया था, इस कारण श्रीकृष्ण (Krishna) को द्वारका जाना पड़ा था.

यह किताब भारत के अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (C. Rajagopalachari) की महाभारत कथा का संक्षिप्त रूप है. मूल पुस्तक को संक्षिप्त करने में कई बार जानकारी आधी-अधूरी रह जाती है, इसलिए राजगोपालाचारी जैसे विद्वान को कदापि दोषी नहीं माना जा सकता. तथ्य यह है कि मगध के शक्तिशाली राजा जरासंध की 2 बेटियों प्राप्ति और शास्ती का विवाह मथुरा नरेश कंस से हुआ था. श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर अपने नाना उग्रसेन को कैद से मुक्त कर राजगद्दी पर बिठा दिया था. अपने दामाद कंस की हत्या से नाराज होकर जरासंध ने 16 बार मथुरा पर आक्रमण किया और हर बार कृष्ण-बलराम ने उसकी सेना का संहार कर उसे पराजित किया. जब 17वीं बार जरासंध ने हमला किया तो कृष्ण व बलराम ने विचार किया कि हमारा तो जरासंध कुछ नहीं बिगाड़ पाता लेकिन युद्ध में हजारों निर्दोष लोग मारे जाते हैं, इसलिए श्रीकृष्ण ने बार-बार का नरसंहार टालने के लिए देवशिल्पी विश्वकर्मा को द्वारकापुरी बनाने का आदेश दिया और सारे मथुरावासियों को वहां भेज दिया.

जब जरासंध आया तो उसे मथुरा खाली मिली. कृष्ण हारे नहीं थे, उन्होंने चतुराई से युद्ध को टाला इसलिए भक्त उन्हें प्रेम से ‘रणछोड़’ भी कहते हैं. यह उनकी दूरदर्शिता थी. श्रीकृष्ण जानते थे कि नियति ने तय कर रखा है कि जरासंध का वध भीम के हाथों होगा. उन्हें यह भी पता था कि जरासंध 2 टुकड़ों में पैदा हुआ था जिसे जरा नामक राक्षसी ने जोड़कर जीवित कर दिया था. उसे चीरकर 2 टुकड़े करने पर ही वह मर सकता था. इसके लिए कृष्ण ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ को निमित्त बनाया और भीम ने कई दिन चले मल्लयुद्ध के बाद कृष्ण के इशारे को समझकर जरासंध का वध कर दिया. इसी प्रकार सहस्त्रार्जुन व बाली ने रावण को परास्त अवश्य किया था लकिन नियति ने रावण का वध राम के हाथों ही तय कर रखा था.