एक नई चुनौती, कोरोना के दौर में कैसे होगा चुनाव

    Loading

    चुनाव लोकतंत्र की पहचान है लेकिन कोरोना संक्रमण के दौर में चुनाव किस प्रकार कराए जाएं, इस बारे में चुनाव आयोग को सूझबूझ के बाद निर्णय लेना होगा. चुनाव के परंपरागत तौर तरीकों की बजाय ऐसे विकल्पों को लाया जाए जो आधुनिक तकनीक ने उपलब्ध कराए हैं. रैली, सभाओं, रोड शो में हजारों की भीड़ उमड़ने से कोरोना और तेजी से फैलेगा इसलिए राजनीतिक दलों को इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया से चुनाव अभियान चलाने के लिए कहा जा सकता है.

    जब आनलाइन क्लासेस हो सकती है तो आनलाइन रैली भी हो सकती है. जिस तरह प्रधानमंत्री समूचे देशवासियों से आकाशवाणी और टीवी के जरिए मन की बात कहते हैं वैसे ही अन्य नेता भी तो कर सकते हैं. वे अपना समय बुक करें और संबोधित करें. मोबाइल के जरिए भी संदेश प्रेषण व प्रचार किया जा सकता है. एक ओर नेता जनता से कोविड प्रोटोकाल का पालन करने को कहें और दूसरी ओर कई हजार लोगों की बड़ी रैली करें तो यह विरोधाभास वाली बात है.

    मैदानों में होने वाली रैली में बगैर मास्क लगाए धक्का-मुक्की करते या एक कमरे से सटकर बैठे लोगों की मौजूदगी महामारी को और बढ़ाएगी. बंगाल के चुनाव में यही हुआ. कोरोना से बचने के लिए सुरक्षा उपायों की अपील करने वाले नेताओं ने स्वयं दर्जनों रैली व जनसभाएं कीं. एक ओर कोरोना तेजी से फैल रहा है तो दूसरी ओर अधिकांश पार्टियां चुनावी राज्यों में भीड़ जुटाने में लगी हैं.

    अपनी लोकप्रियता का दिखावा करने के लिए राजनीतिक दल गरीब समुदाय को हजारों की तादाद में बसों-ट्रकों में लाकर रैली करते हैं. देश के 5 राज्यों में फरवरी के अंत और मार्च के प्रथम सप्ताह में चुनाव होने की संभावना है.

    प्रधानमंत्री तथा राज्य सरकारों को वैज्ञानिकों, प्रशासकों तथा प्रबंधन विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए कि चुनाव को सुरक्षित रूप कैसे दिया जए? जब वर्क फ्राम होम हो सकता है तो घर बैठे आधार कार्ड व इलेक्शन कार्ड दिखाकर क्या वोटिंग नहीं हो सकती? चुनाव महत्वपूर्ण हे तो इंसान की जान भी तो महत्व रखती है. जो नेता खुद मास्क पहने बिना नजर आते हैं वे जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं?